Rajasthan Diary - May - June 2020Add to Favorites

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Rajasthan Diary May-June 2020

Focused on effects of corona covid-19

कोरोना के सिवा बीमारी और भी हैं

कोरोना के सिवा बीमारी और भी हैं

कोरोना के सिवा बीमारी और भी हैं

1 min

कोरोना नहीं उसके बाद की चिंता खाए जा रही है प्रवासी मजदूरों को

कोरोना वायरस ने देश में कई तरह के बदलाव किए हैं। इनमें प्रवासी मजदूरों का बड़े पैमाने पर वापसी भी शामिल है।

कोरोना नहीं उसके बाद की चिंता खाए जा रही है प्रवासी मजदूरों को

1 min

लॉक डाउन में बार-बार पलायन... साजिश तो शायद नहीं

लॉक डाउन लागू होने के बाद बड़ी संख्या में मजदूर निकलने लगे, पहले दिल्ली और लॉकडाउन 2.0 के बरइ मुम्बई, सूरत में अचानक से मजदूरों का पलायन होना कोरोना के संकट को और बढ़ाने में सहायक बन गया। देश के विभिन्न दलों के नेताओं ने इसे विपक्षी दल की साजिश बता अपना पल्ला झाड़ लिया। यहां तक की सुप्रीम कोर्ट ने भी हाथ खड़े कर लिए, सारे चैनल चिल्ला-चिल्ला कर राजनीतिक साजिश बता रहे थे। लेकिन इन सबके बीच दुख की बात तो यह थी कि किसी ने भी मजदूरों के असल दर्द को समझा ही नहीं।

लॉक डाउन में बार-बार पलायन... साजिश तो शायद नहीं

1 min

घर परिवार मांय कोरोना वायरस संकरमण बंचाव रा सनातन उपाय

दुनिया में मरी रा नूवां रूप में आया कोरोना वायरस रा संकरमण सूं बचण री जुगत मांय आखा संसार रा बैग्यानिक आप-आप री दिमागी ताकत लगाय दी।

घर परिवार मांय कोरोना वायरस संकरमण बंचाव रा सनातन उपाय

1 min

बाजार को कितना डसेगा कोरोना?

कोरोना वायरस से बचने के लिए लागू किए गए देशव्यापी लॉकडाउन ने भारतीय अर्थव्यवस्था की कमर तोड़ दी है। कई क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों ने भारत के सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी विकास दर के अपने अनुमानों में संशोधन किया है।

बाजार को कितना डसेगा कोरोना?

1 min

लॉकडाउन ने दिखाया आसमान का असल नीला रंग प्रकृति को रीबूट करने का वक्त है लॉकडाउन

दुनियाभर में हर साल लाखों लोगों को असमय मौत की नींद सुलाने वाला वायु प्रदूषण, कोरोना महामारी से हार गया। दुनियाभर में मौत का तांडव करने वाले कोरोना वायरस से सुरक्षा के लिए किया गया लॉकडाउन पर्यावरण के लिए संजीवनी बन गया। अब से करीब एक माह पहले तक वायु प्रदूषण से चिंतित दुनियाभर के वैज्ञानिकों को लॉकडाउन ने प्रदूषण को काबू में रखने का नया रास्ता सुझा दिया है।

लॉकडाउन ने दिखाया आसमान का असल नीला रंग प्रकृति को रीबूट करने का वक्त है लॉकडाउन

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तीर्थस्थल: आस्था के साथ अर्थव्यवस्था पर कोरोना का आघात

आपके गांव-शहर में घर के निकट छोटा सा मंदिर हो अथवा आस्था के केन्द्र माने जाने वाले बड़े मंदिर। राजस्थान के सालासर बालाजी, खाटूश्यामजी सरीखे प्रमुख मंदिर हो या फिर वैष्णोदेवी- तिरुपति बालाजी जैसे देश के प्रमुख तीर्थस्थल। कोरोना वायरस के आघात से कोई धार्मिक स्थल अछूता नहीं है। यानी सामाजिक दूरियों के साथ धार्मिक दूरियां भी प्रभावी है। कोरोना वायरस के संक्रमण से बचाव के लिए मंदिरों में श्रद्धालुओं के प्रवेश पर पिछले डेढ़ माह से प्रतिबंध है, इससे श्रद्धालु अपने आराध्य के दर्शनों से महरूम है। लॉकडाउन ने इन मंदिरों और तीर्थस्थलों के साथ ही इन प्रमुख शहर-कस्बों की अर्थव्यवस्था पूरी तरह से पटरी से उतर चुकी है।

तीर्थस्थल: आस्था के साथ अर्थव्यवस्था पर कोरोना का आघात

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कोविड 19 : संकट भी और अवसर भी

डब्ल्यूएचओ के आंकड़े बताते हैं कि वैश्विक स्तर पर कोरोना वायरस के कुल प्रकरणों के लगभग 80 प्रतिशत प्रकरण 123 देशों की सूची में शीर्ष के 10 सबसे शक्तिशाली अर्थव्यवस्थाओं और मजबूत हेल्थ केयर इंफ्रास्ट्रक्चर वाले देशों से जुड़े हैं। जब कोविड 19 को लेकर दुनिया के विकसित देशों की स्थिति इतनी चिंताजनक है तो फिर जनसंख्या विस्फोट, सीमित संसाधनों और कमजोर हेल्थ केयर इंफ्रास्ट्रक्चर वाले भारत जैसे विकासशील देश के लिए तो विद्यमान कोरोना संकट कितना घातक हो सकता है, यह समझना मुश्किल नहीं है।

कोविड 19 : संकट भी और अवसर भी

1 min

भारत में लॉकडाउन: कितना सफल,कितनी चुनौतियां

लॉक डाउन के कारण दुनिया के तमाम मुल्कों के सामने आर्थिक संकट, बेरोजगारी, भूखमरी सहित कई संकट उठ खड़े हुए हैं। लेकिन कोरोना वायरस से निपटने का अभी यही एकमात्र रास्ता है, क्योंकि कोरोना की वैक्सीन उपलब्ध नहीं होने और वायरस की ऊंची संक्रमण दर की वजह से सोशल डिस्टेंसिंग ही इससे लड़ने का शायद एकमात्र रास्ता है। लेकिन बड़ा सवाल यह है कि क्या लॉक डाउन ही कोरोना से लड़ने का जरिया है। सवाल ये भी कि लॉकडाउन से कोरोना मामलों में कमी आई या नहीं?

भारत में लॉकडाउन: कितना सफल,कितनी चुनौतियां

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मझधार में मजदूर

भूख, तड़प और जिल्लत के एहसास के साथ अपने-अपने गांव लौट रहे मजदूर कह रहे हैं कि वे अब शहर आने से पहले सौ बार सोचेंगे। भले ही गांव, घर के आसपास के इलाकों में पर्याप्त संसाधन, स्रोत और औद्योगिक प्रतिष्ठान नहीं हैं, लेकिन वहां भूखमरी नहीं है। यदि ऐसा हुआ तो शहरों की क्या दुर्दशा होगी? यदि सभी मजदूर गांव में ही ठहर गए तो वहां बेकारी का क्या हाल होगा?

मझधार में मजदूर

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