लौट के बुध्दू घर को आए
Shaikshanik Sandarbh|January - February 2022
कहानी - लौट के बुध्दू घर को आए
सतीश अग्निहोत्री
लौट के बुध्दू घर को आए

शर्माजी को जब होश आया, डॉ.मेहता उनके सामने खड़े थे। उन्होंने उठने की कोशिश की लेकिन डॉ. मेहता ने उन्हें मना कर दिया, "लेटे रहिए, लेटे रहिए, शर्माजी। आप तो लकी निकले। इतना बड़ा पेड़ आप पर गिरा, फिर भी आप बाल-बाल बच गए। एकदम प्रोटेक्टेड, मानो डाल का आकार आपके लिए ही बना हो।"

هذه القصة مأخوذة من طبعة January - February 2022 من Shaikshanik Sandarbh.

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किशोरावस्था में लड़के अनेक शारीरिक व भावनात्मक बदलावों से गुजर रहे होते हैं। पितृसत्तात्मक सामाजिक ताने-बाने में अक्सर इन बदलावों पर खुलकर बातचीत कर पाना और एक स्वस्थ नज़रिया विकसित कर पाना सम्भव नहीं होता। इसी कमी को ध्यान में रखकर एकलव्य ने बेटा करे सवाल किताब विकसित की है जिसके अलग-अलग अध्यायों में किशोरावस्था के विभिन्न आयामों व उनके सामाजिक-सांस्कृतिक, शारीरिक व भावनात्मक पहलुओं की चर्चा की गई है। आइए, पढ़ते हैं इस किताब का एक महत्वपूर्ण हिस्सा।

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उन दिनों मैं पहले दर्जे में था। स्कूल से लौटकर अक्सर अपने चाचा के घर जाया करता था। उनका घर हमारे मुहल्ले ही में था। वे अकेले रहते थे। घर का सारा काम खुद करते थे। उनकी मेज़ किताबों और कागज़ों से इतनी लदी रहती थी कि देखकर लगता था, मानो अभी ढह जाएगी! लेकिन ऐसा हुआ कभी नहीं क्योंकि मेज़ के पाए किसी हाथी के बच्चे की टाँगों जितने मोटे और मज़बूत थे।

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