धान फसल अवशेष का प्रबंधन
Modern Kheti - Hindi|15th November 2022
अवशेष प्रबंधन - हरियाणा
डॉ. कविता, डॉ. प्रधुमन भटनागर और डॉ. राजपाल,
धान फसल अवशेष का प्रबंधन

सर्दियां आते ही उत्तर भारत में हवा की गुणवत्ता बिगड़ने लगती है। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में धुंध ( धुएं और कोहरे) की मोटी चादर छा जाती है, जिससे दृश्यता कम हो जाती है और यात्रियों को मुश्किल का सामना करना पड़ता है। खराब वायु गुणवत्ता का एक प्रमुख कारण पंजाब और हरियाणा में किसानों द्वारा धान की पराली को जलाना है। यह प्रथा किसानों के बीच अधिक आम है क्योंकि वे रबी फसलों की बुवाई के लिए अपने खेत तैयार करते हैं। हालांकि, खेतों में आग लगाने के परिणामस्वरूप निकलने वाला घना धुआं लोगों के लिए गंभीर स्वास्थ्य खतरा पैदा करता है। वर्तमान में हरियाणा व पंजाब जैसे कृषि की दृष्टि से विकसित राज्यों में भी मात्रा 10 प्रतिशत किसान ही फसल अवशेषों का प्रबंधन कर रहे हैं। हमारे देश में सालाना 154.59 मीट्रिक टन/वर्ष, धान के अवशेष का उत्पादन होता है। इसको जलाने से 0.236 टन नाइट्रोजन, 0.009 टन फॉस्फोरस एवं 0.200 टन/वर्ष पोटाश का नुकसान हो रहा है। तकनीकों की जानकारी के अभाव एवं कुछ किसान जानकारी होते हुए भी अनभिज्ञ बनकर फसल अवशेषों को जला रहे हैं। अवशेष प्रबंधन फसल अवशेषों का प्रबंधन हमारे देश में उचित तरीके से नहीं किया जाता है। इसलिए यह हमारे लिए बहुत ही गंभीर समस्या बनती जा रही है। यह कहना भी सही होगा कि इसका उपयोग मृदा में जीवांश पदार्थों के रूप में न करके अधिकतर भाग को जलाकर नष्ट कर दिया जाता है या दूसरे घरेलू कार्यों में उपयोग कर लिया जाता है। एक अध्ययन के अनुसार फसल के अवशेषों का केवल 22 प्रतिशत ही इस्तेमाल होता है, शेष जला दिया जाता है।

धान की फसल का अवशेष जलाने से होने वाले दुष्प्रभाव

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