मृदा प्रदूषण को ऐसे समझिए: मृदा प्रदूषण मुख्यतः कैडमियम, क्रोमियम, तांबा आदि जैसी भारी धातुओं एवं कीटनाशक, रासायनिक उर्वरक, जंगली घास, जहरीली गैस आदि से होता हैं। उदाहरण के लिए यदि कीटनाशकों का प्रयोग उचित ढंग से न किया जाये तो यह कीड़ों को मारने के अलावा पौधों एवं मृदा को भी प्रभावित करता है। अवैध मृदा खनन एवं उपरोक्त प्रदूषकों का मृदा में विलय मृदा प्रदुषण का सबसे बड़ा कारण हैं। हवा में मौजूद हानिकारक गैसों में पाए जाने वाले रासायनिक यौगिक वर्षा द्वारा मृदा में आकर मिल जाते हैं। ये रसायन मृदा की सतह एवं भीतर दोनों जगहों पर मृदा की गुणवत्ता को प्रभावित करते हैं। हानिकारक रसायनों का रिसाव भूमिगत जल को भी प्रदूषित करता हैं, मृदा और जल के प्रदूषित होने से पर्यावरण पर हानिकारक प्रभाव पड़ता है, सभी जीव-जंतु जो प्रदूषित मृदा के पर्यावरण का हिस्सा हैं उन पर इसका असर अधिक होता है। प्रदूषित मृदा से उपजे खाद्यान्न मानव एवं पशुओं के स्वास्थ्य पर गहरा असर डालते हैं। कुछ हानिकारक बीमारियाँ जैसे कि कैंसर के होने का एक प्रमुख कारण ऐसे प्रदूषित खाद्य पदार्थ ही हैं।
मृदा प्रदूषण के प्रकार : मृदा प्रदूषण मुख्यतः दो प्रकार का होता हैं
(क) प्राकृतिक : प्राकृतिक मृदा प्रदूषण हानि पहुंचाने वाले स्तर से अक्सर नीचे होता हैं। वर्षा द्वारा मृदा कटाव, मृदा में मौजूद लवण का भूमिगत जल में मिलाव, मृदा में प्राकृतिक अमलता एवं क्षारीयता आदि प्राकृतिक मृदा प्रदूषण का हिस्सा हैं। मृदा के जैविक, रासायनिक एवं भौतिक गुण इन समस्याओं को दूर करने में बहुत हद तक सक्षम होते हैं, यदि ऐसा न हो तो मामूली मृदा उपचार एवं निपटान प्रक्रिया से प्राकृतिक मृदा प्रदुषण को रोका जा सकता हैं।
(ख) मानव निर्मित : मानव निर्मित मृदा प्रदूषण पर ध्यान देना अत्यंत महत्वपूर्ण हैं क्योंकि मानव निर्मित मृदा प्रदूषण अक्सर हानिकारक स्तर से ऊपर होता है और यदि इसका निपटान समय पर न हो तो आने वाले कई वर्षों तक इसके दुष्प्रभाव मृदा पर बने रहते हैं जो कि अमिट भी हो सकते हैं। प्रस्तुत लेख में मानव निर्मित मृदा प्रदुषण के बारे में जानकारी सम्मिलित की गई हैं।
मानव निर्मित मृदा प्रदूषण के प्रकार :
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गोभीवर्गीय सब्जियों के रोग और उनकी रोकथाम
सर्दी में गोभीवर्गीय सब्जियों (फूलगोभी, बंदगोभी व गांठगोभी) का बहुत महत्व है क्योंकि सर्दी में सब्जियों के आधे क्षेत्रफल में यही सब्जियां बोई जाती हैं। इन सब्जियों को कैल्शियम, मैग्नीशियम, फॉस्फोर्स, विटामिन ए एवं सी इत्यादि का अच्छा स्रोत माना जाता है।
हाई-टेक पॉलीहाउस खेती में अधिक उत्पादन के लिए कंप्यूटर की भूमिका
भारत देश में आज के समय जनसंख्या तेजी से बढ़ रही है जिससे रहने के लिए लगातार कृषि योग्य भूमि का उपयोग कारखाने लगाने, मकान बनाने में हो रहा है। कृषि योग्य भूमि कम होने से जनसंख्या का भेट भरने की समस्या से बचने के लिए सरकार ने विभिन्न योजनाएं चला रखी हैं जिससे किसान कम लागत में अधिक मुनाफा कमा सकें।
सरसों की खेती अधिक उपज के लिए उन्नत शस्य पद्धतियाँ
सरसों (Brassica spp.) एक महत्वपूर्ण तिलहनी फसल है, जो पोषण और व्यवसायिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण है। भारत में सरसों का उपयोग मुख्यतः खाद्य तेल, मसाले और औषधि के रूप में किया जाता है।
गेहूं में सूक्ष्म पोषक तत्वों का महत्व
गेहूं में मुख्य पोषक तत्वों का संतुलित प्रयोग अति आवश्यक है। प्रायः किसान भाई उर्वरकों में डी.ए.पी. व यूरिया का अधिक प्रयोग करते हैं और पोटाश का बहुत कम प्रयोग करते हैं।
पॉलीटनल में सब्जी पौध तैयार करना
देश में व्यवसायिक सब्जी उत्पादन को बढ़ावा देने में सब्जियों की स्वस्थ पौध उत्पादन एक महत्वपूर्ण विषय है जिस पर आमतौर से किसान कम ध्यान देते हैं।
क्या है मनरेगा की कृषि में भागेदारी?
ग्रामीण विकास मंत्रालय की ओर से कमियां पूरी करें और गुणवत्ता बढ़ाने के लिए संबंधित विभागों से कनवरजैंस के लिए जोर दिया जाता है। जैसे खेतीबाड़ी, बागवानी, वानिकी, जल संसाधन, सिंचाई, प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना, नेशनल रूरल लिवलीहुड मिशन और अन्य प्रोग्रामों के सहयोग से जो कि मनरेगा अधीन निर्माण की संपति की क्वालिटी को सुधारना और टिकाऊ बनाया जा सके।
अलसी की फसल के कीट व रोग एवं उनका नियंत्रण
अलसी की फसल को विभिन्न प्रकार के रोग जैसे गेरुआ, उकठा, चूर्णिल आसिता तथा आल्टरनेरिया अंगमारी एवं कीट यथा फली मक्खी, अलसी की इल्ली, अर्धकुण्डलक इल्ली चने की इल्ली द्वारा भारी क्षति पहुंचाई जाती है जिससे अलसी की फसल के उत्पादन में भरी कमी आती है।
मटर की फसल के कीट एवं रोग और उनका नियंत्रण कैसे करें
अच्छी उपज के लिए मटर की फसल के कीट एवं रोग की रोकथाम जरुरी है। मटर की फसल को मुख्य रोग जैसे चूर्णसिता, एसकोकाईटा ब्लाईट, विल्ट, बैक्टीरियल ब्लाईट और भूरा रोग आदि हानी पहुचाते हैं।
कृषि-वानिकी और वनों व वृक्षों का धार्मिक एवं पर्यावरणीय महत्व
कृषि-वानिकी : कृषि वानिकी भू-उपयोग की वह पद्धति है जिसके अंतर्गत सामाजिक तथा पारिस्थितिकीय रुप से उचित वनस्पतियों के साथ-साथ कृषि फसलों या पशुओं को लगातार या क्रमबद्ध ढंग से शामिल किया जाता है। कृषि वानिकी में खेती योग्य भूमि पर फसलों के साथ-साथ वृक्षों को भी उगाया जाता है। इस प्रणाली द्वारा उत्पाद के रुप में ईंधन की लकड़ी, हरा चारा, अन्न, मौसमी फल इत्यादि आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं। इस प्रणाली को अपनाने से भूमि की उपयोगिता बढ़ जाती है।
'रिचेस्ट फार्मर ऑफ इंडिया' अवार्ड प्राप्त करने वाली सफल महिला किसान-नीतुबेन पटेल
नीतूबेन पटेल ने जैविक कृषि में उत्कृष्ट योगदान देकर \"सजीवन\" नामक फार्म की स्थापना की, जो 10,000 एकड़ में 250 जैविक उत्पाद उगाता है। उन्होंने 5,000 किसानों और महिलाओं को प्रशिक्षित कर जैविक खेती में प्रेरित किया।