इसे भूमिहीन युवक व युवतियाँ भी उनके पास उपलब्ध किसी भी कच्चे या पक्के कमरे से शुरू कर सकते हैं। पूरे विश्व में लगभग 14000 से 15000 मशरूम की प्रजातियाँ पाई जाती हैं और किन्तु सभी खाने योग्य नहीं होती। कुछ मशरूम जहरीली होती हैं और कुछ प्रजातियां केवल दवा बनाने के लिये प्रयोग में लाई जाती हैं। खाने योग्य सभी रू में भी पौष्टिकता के साथ साथ कई औषधीय गुण भी पाये जाते हैं। इनके नियमित सेवन से मनुष्य अपने आप को कई रोगों से बचा सकता है। किन्तु जागरूकता के अभाव से ग्रामीण आँचल में अभी भी इनका सेवन नहीं किया जाता। भारत में जहां मुख्यतया 4.5 तरह की ही मशरूम पैदा की जाती है वहीं चीन में लगभग 60 तरह की मशरूम का उत्पादन किया जाता है। देश में सफेद बटन मशरूम का उत्पादन ही मुख्य रूप से कई राज्यों में किया जाता है। वर्ष 2021-22 के दौरान देश में केवल 2,36,450 मैट्रिक टन मशरूम का उत्पादन हुआ। मशरूम का उत्पादन देश के सभी प्रदेशों में किया जाता है। 2021-22 वर्ष के दौरान बिहार राज्य ने 28710 मैट्रिक टन खुम्ब का उत्पादन करके प्रथम स्थान पाया और उड़ीसा राज्य ने 26000 मैट्रिक टन खुम्ब का उत्पादन करके दूसरा स्थान हासिल किया। हरियाणा प्रांत ने भी 21200 मैट्रिक टन खुम्ब का उत्पादन करके देश में तीसरे स्थान पर रहा। देश के दूसरे राज्यों जैसे पंजाब, हिमाचल प्रदेश, छतीसगढ़, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, गुजरात, तामिलनाडु, पश्चिम बंगाल इत्यादि में भी 10000 से लेकर 18000 मैट्रिक टन प्रति वर्ष मशरूम पैदा किया जाता है। हरियाणा प्रांत में लगभग 3000 उत्पादक सफेद बटन खुम्ब की काश्त करते हैं और ज्यादातर उत्पादन शरद ऋतु में किया जाता हैं बल्कि कुछ खुम्ब उत्पादक तो वातानुकूलित नियंत्रित कक्षों में सारा वर्ष इस मशरूम को पैदा करते हैं। यह एक नकदी फसल है और दूसरी नकदी फसलों की तरह इसमें भी कुछ जैविक तथा अजैविक समस्याएँ देखी जाती हैं जिनका मशरूम उत्पादकों को ज्ञान नहीं होता। कई बार मशरूम उत्पादक को सही ज्ञान न होने से आर्थिक हानि की आशंका बनी रहती है। इस लेख में सफेद बटन खुम्ब के मुख्य जैविक एवं अजैविक समस्याओं के कारण, लक्षण तथा इनके समाधान पर विस्तार से बताया गया है।
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गोभीवर्गीय सब्जियों के रोग और उनकी रोकथाम
सर्दी में गोभीवर्गीय सब्जियों (फूलगोभी, बंदगोभी व गांठगोभी) का बहुत महत्व है क्योंकि सर्दी में सब्जियों के आधे क्षेत्रफल में यही सब्जियां बोई जाती हैं। इन सब्जियों को कैल्शियम, मैग्नीशियम, फॉस्फोर्स, विटामिन ए एवं सी इत्यादि का अच्छा स्रोत माना जाता है।
हाई-टेक पॉलीहाउस खेती में अधिक उत्पादन के लिए कंप्यूटर की भूमिका
भारत देश में आज के समय जनसंख्या तेजी से बढ़ रही है जिससे रहने के लिए लगातार कृषि योग्य भूमि का उपयोग कारखाने लगाने, मकान बनाने में हो रहा है। कृषि योग्य भूमि कम होने से जनसंख्या का भेट भरने की समस्या से बचने के लिए सरकार ने विभिन्न योजनाएं चला रखी हैं जिससे किसान कम लागत में अधिक मुनाफा कमा सकें।
सरसों की खेती अधिक उपज के लिए उन्नत शस्य पद्धतियाँ
सरसों (Brassica spp.) एक महत्वपूर्ण तिलहनी फसल है, जो पोषण और व्यवसायिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण है। भारत में सरसों का उपयोग मुख्यतः खाद्य तेल, मसाले और औषधि के रूप में किया जाता है।
गेहूं में सूक्ष्म पोषक तत्वों का महत्व
गेहूं में मुख्य पोषक तत्वों का संतुलित प्रयोग अति आवश्यक है। प्रायः किसान भाई उर्वरकों में डी.ए.पी. व यूरिया का अधिक प्रयोग करते हैं और पोटाश का बहुत कम प्रयोग करते हैं।
पॉलीटनल में सब्जी पौध तैयार करना
देश में व्यवसायिक सब्जी उत्पादन को बढ़ावा देने में सब्जियों की स्वस्थ पौध उत्पादन एक महत्वपूर्ण विषय है जिस पर आमतौर से किसान कम ध्यान देते हैं।
क्या है मनरेगा की कृषि में भागेदारी?
ग्रामीण विकास मंत्रालय की ओर से कमियां पूरी करें और गुणवत्ता बढ़ाने के लिए संबंधित विभागों से कनवरजैंस के लिए जोर दिया जाता है। जैसे खेतीबाड़ी, बागवानी, वानिकी, जल संसाधन, सिंचाई, प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना, नेशनल रूरल लिवलीहुड मिशन और अन्य प्रोग्रामों के सहयोग से जो कि मनरेगा अधीन निर्माण की संपति की क्वालिटी को सुधारना और टिकाऊ बनाया जा सके।
अलसी की फसल के कीट व रोग एवं उनका नियंत्रण
अलसी की फसल को विभिन्न प्रकार के रोग जैसे गेरुआ, उकठा, चूर्णिल आसिता तथा आल्टरनेरिया अंगमारी एवं कीट यथा फली मक्खी, अलसी की इल्ली, अर्धकुण्डलक इल्ली चने की इल्ली द्वारा भारी क्षति पहुंचाई जाती है जिससे अलसी की फसल के उत्पादन में भरी कमी आती है।
मटर की फसल के कीट एवं रोग और उनका नियंत्रण कैसे करें
अच्छी उपज के लिए मटर की फसल के कीट एवं रोग की रोकथाम जरुरी है। मटर की फसल को मुख्य रोग जैसे चूर्णसिता, एसकोकाईटा ब्लाईट, विल्ट, बैक्टीरियल ब्लाईट और भूरा रोग आदि हानी पहुचाते हैं।
कृषि-वानिकी और वनों व वृक्षों का धार्मिक एवं पर्यावरणीय महत्व
कृषि-वानिकी : कृषि वानिकी भू-उपयोग की वह पद्धति है जिसके अंतर्गत सामाजिक तथा पारिस्थितिकीय रुप से उचित वनस्पतियों के साथ-साथ कृषि फसलों या पशुओं को लगातार या क्रमबद्ध ढंग से शामिल किया जाता है। कृषि वानिकी में खेती योग्य भूमि पर फसलों के साथ-साथ वृक्षों को भी उगाया जाता है। इस प्रणाली द्वारा उत्पाद के रुप में ईंधन की लकड़ी, हरा चारा, अन्न, मौसमी फल इत्यादि आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं। इस प्रणाली को अपनाने से भूमि की उपयोगिता बढ़ जाती है।
'रिचेस्ट फार्मर ऑफ इंडिया' अवार्ड प्राप्त करने वाली सफल महिला किसान-नीतुबेन पटेल
नीतूबेन पटेल ने जैविक कृषि में उत्कृष्ट योगदान देकर \"सजीवन\" नामक फार्म की स्थापना की, जो 10,000 एकड़ में 250 जैविक उत्पाद उगाता है। उन्होंने 5,000 किसानों और महिलाओं को प्रशिक्षित कर जैविक खेती में प्रेरित किया।