अरण्ड भारत की एक महत्वपूर्ण एवं व्यवसायिक अखाद्य तिलहन फसल है। भारत का अरण्ड के क्षेत्रफल एवं उत्पादन में विश्व में प्रथम स्थान है तथा अरण्ड तेल के विश्व बाजार में लगभग तीन चौथाई हिस्से पर भारत का योगदान है। गुजरात, आंध्रप्रदेश एवं राजस्थान अरण्ड की खेती के लिए मुख्य राज्य हैं, आन्ध्र प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडू आदि राज्यों में उत्पादकता बहुत ही कम है। कम उपजाऊ भूमि, बारानी खेती एवं फसल उत्पादन के आदानों को कम उपयोग के कारण अरण्ड की पैदावार कम आती है। हरियाणा में अरण्ड की खेती कम सिंचित एवं पूर्ण सिचिंत, मरगोझा एवं सरसों में तना गलन प्रभावित क्षेत्रों में सफलतापूर्वक ली जा सकती है। राजस्थान की सीमा से जुड़े जिलों सिरसा, भिवानी, हिसार, फतेहबाद, महेन्द्रगढ़, रेवाड़ी, जीन्द, झज्जर व गुड़गांव के कुछ हिस्से में अरण्ड की सफलता की प्रबल सम्भावनाएं हैं। इसके तेल का हवाई जहाज के इंजन का तेल मशीनों में चिकनाई प्लास्टिक, चमड़ा, विभिन्न रंगों की डाई, सौंदर्य प्रसाधन, साबुन, औषधियाँ एवं अनेकों अन्य उत्पादों में उपयोग होने के कारण औद्योगिक महत्व है। अधिक आमदनी एवं कम जोखिम के लिए खरीफ एवं रबी की विभिन्न फसलों के साथ अन्तः फसल प्रणाली में अरण्ड की बिजाई करें। इससे अन्तः फसलों की पैदावार भी बढ़ती है। अरण्ड की अधिक पैदावार के लिए किसान निम्नलिखित उन्नत तकनीके अपनाएं।
उन्नत किस्में: बारानी एवं कम सिंचित क्षेत्र में डी सी एच 177; हाईब्रिड का प्रयोग करें। सिंचित एवं उच्च आदान प्रबन्धन वाले क्षेत्रों में भी डी सी एच 177 की बिजाई करें, यह हाईब्रिड कम पानी एवं ठण्ड वाले इलाकों में भी ज्यादा पैदावार देता है। जी सी एच 7 एवं डी सी एच 519 की बिजाई सिचित इलाके में कर सकते हैं। डी सी एच 177 में सफेद मक्खी का प्रकोप बहुत ही कम होता है।
बिजाई का समय: संकर किस्मों की बिजाई का सर्वोत्तम समय जून अन्त से मध्य जुलाई है। जुलाई अन्त तक बिजाई अवश्य कर लें। जल्दी बिजाई से खरपतवारों एवं कीटों का ज्यादा प्रकोप होता है और अगस्त में बिजाई करने से सर्दी का प्रकोप अधिक एवं उत्पादन कम हो जाता है।
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गोभीवर्गीय सब्जियों के रोग और उनकी रोकथाम
सर्दी में गोभीवर्गीय सब्जियों (फूलगोभी, बंदगोभी व गांठगोभी) का बहुत महत्व है क्योंकि सर्दी में सब्जियों के आधे क्षेत्रफल में यही सब्जियां बोई जाती हैं। इन सब्जियों को कैल्शियम, मैग्नीशियम, फॉस्फोर्स, विटामिन ए एवं सी इत्यादि का अच्छा स्रोत माना जाता है।
हाई-टेक पॉलीहाउस खेती में अधिक उत्पादन के लिए कंप्यूटर की भूमिका
भारत देश में आज के समय जनसंख्या तेजी से बढ़ रही है जिससे रहने के लिए लगातार कृषि योग्य भूमि का उपयोग कारखाने लगाने, मकान बनाने में हो रहा है। कृषि योग्य भूमि कम होने से जनसंख्या का भेट भरने की समस्या से बचने के लिए सरकार ने विभिन्न योजनाएं चला रखी हैं जिससे किसान कम लागत में अधिक मुनाफा कमा सकें।
सरसों की खेती अधिक उपज के लिए उन्नत शस्य पद्धतियाँ
सरसों (Brassica spp.) एक महत्वपूर्ण तिलहनी फसल है, जो पोषण और व्यवसायिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण है। भारत में सरसों का उपयोग मुख्यतः खाद्य तेल, मसाले और औषधि के रूप में किया जाता है।
गेहूं में सूक्ष्म पोषक तत्वों का महत्व
गेहूं में मुख्य पोषक तत्वों का संतुलित प्रयोग अति आवश्यक है। प्रायः किसान भाई उर्वरकों में डी.ए.पी. व यूरिया का अधिक प्रयोग करते हैं और पोटाश का बहुत कम प्रयोग करते हैं।
पॉलीटनल में सब्जी पौध तैयार करना
देश में व्यवसायिक सब्जी उत्पादन को बढ़ावा देने में सब्जियों की स्वस्थ पौध उत्पादन एक महत्वपूर्ण विषय है जिस पर आमतौर से किसान कम ध्यान देते हैं।
क्या है मनरेगा की कृषि में भागेदारी?
ग्रामीण विकास मंत्रालय की ओर से कमियां पूरी करें और गुणवत्ता बढ़ाने के लिए संबंधित विभागों से कनवरजैंस के लिए जोर दिया जाता है। जैसे खेतीबाड़ी, बागवानी, वानिकी, जल संसाधन, सिंचाई, प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना, नेशनल रूरल लिवलीहुड मिशन और अन्य प्रोग्रामों के सहयोग से जो कि मनरेगा अधीन निर्माण की संपति की क्वालिटी को सुधारना और टिकाऊ बनाया जा सके।
अलसी की फसल के कीट व रोग एवं उनका नियंत्रण
अलसी की फसल को विभिन्न प्रकार के रोग जैसे गेरुआ, उकठा, चूर्णिल आसिता तथा आल्टरनेरिया अंगमारी एवं कीट यथा फली मक्खी, अलसी की इल्ली, अर्धकुण्डलक इल्ली चने की इल्ली द्वारा भारी क्षति पहुंचाई जाती है जिससे अलसी की फसल के उत्पादन में भरी कमी आती है।
मटर की फसल के कीट एवं रोग और उनका नियंत्रण कैसे करें
अच्छी उपज के लिए मटर की फसल के कीट एवं रोग की रोकथाम जरुरी है। मटर की फसल को मुख्य रोग जैसे चूर्णसिता, एसकोकाईटा ब्लाईट, विल्ट, बैक्टीरियल ब्लाईट और भूरा रोग आदि हानी पहुचाते हैं।
कृषि-वानिकी और वनों व वृक्षों का धार्मिक एवं पर्यावरणीय महत्व
कृषि-वानिकी : कृषि वानिकी भू-उपयोग की वह पद्धति है जिसके अंतर्गत सामाजिक तथा पारिस्थितिकीय रुप से उचित वनस्पतियों के साथ-साथ कृषि फसलों या पशुओं को लगातार या क्रमबद्ध ढंग से शामिल किया जाता है। कृषि वानिकी में खेती योग्य भूमि पर फसलों के साथ-साथ वृक्षों को भी उगाया जाता है। इस प्रणाली द्वारा उत्पाद के रुप में ईंधन की लकड़ी, हरा चारा, अन्न, मौसमी फल इत्यादि आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं। इस प्रणाली को अपनाने से भूमि की उपयोगिता बढ़ जाती है।
'रिचेस्ट फार्मर ऑफ इंडिया' अवार्ड प्राप्त करने वाली सफल महिला किसान-नीतुबेन पटेल
नीतूबेन पटेल ने जैविक कृषि में उत्कृष्ट योगदान देकर \"सजीवन\" नामक फार्म की स्थापना की, जो 10,000 एकड़ में 250 जैविक उत्पाद उगाता है। उन्होंने 5,000 किसानों और महिलाओं को प्रशिक्षित कर जैविक खेती में प्रेरित किया।