1. बीज बहुलीकरण
(Multiplication): भारत के विभिन्न कृषि अनुसन्धान संस्थानों द्वारा फसलों की नई किस्में विकसित की जाती थी परन्तु इन अनुसन्धान संस्थानों के पास किस्म का बहुलीकरण करके किसानों में वितरण के लिये न तो धन था और न ही कोई साधन था। अतः भारत ने 1959 में बीज बहुलीकरण की समस्या पर मंथन करने के लिए कमेटी गठित की गई।
2. नेशनल सीड्स कारपोरेशन का उदय: भारत सरकार द्वारा 1962 में (Expert Standing Committee) बनाई तथा उसकी सिफारिशों के आधार पर राष्ट्रीय स्तर पर प्रथम बार शासकीय नियन्त्रण में बीज उत्पादन, प्रमाणीकरण एवं विक्रय के लिए 13.04.1963 में नेशनल सीड्स कारपोरेशन की रचना की तथा 01.07.1963 से नेशनल सीड्स कारपोरेशन ने कार्य प्रारम्भ किया। इसके प्रथम प्रबन्ध निदेशक डॉ. जी.वी. चलम बने और अध्यक्ष श्री ए. डी. पंडित बने। नेशनल सीड्स कारपोरेशन को बने आज 60 वर्ष हो गये हैं।
3. हरित क्रान्ति का सूत्रपात: नेशनल सीड्स कारपोरेशन ने अपने शुरूआती दिनों में मक्का की संकर किस्में गंगा-1, गंगा-101, रणजीत एवं डैकन, बाजरा की संकर बाजराएच.बी.-1, एच.बी.-2, एच. बी.-3 एवं एच. बी. 4, ज्वार की संकर किस्में सी.एस.एच. - 1, 2, 3, 4 आदि किस्मों का बीजोत्पादन किया। इसी दौरान तायवान देश से धान की ताप अंसवेदी किस्म तेइचुंग नेटिव-1 (TN-1) का बीज मंगाया तथा परिणाम सुखद रहे। अन्तर्राष्ट्रीय धान अनुसंधन संस्थान पिलीपीन्स से IR-36 किस्म धान का बीज मंगवाया। वर्ष 1965 में चाइना के साथ युद्ध के दौरान गेहूँ की मंधरेपन (c/BUwarfness) के लिये नोरिन - 10 जीन युक्त मैक्सीकन गेहूँ की किस्मों लारमा रोजो एवं सनोरा-64 का लगभग 18000 टन बीज मंगवाया और नवजात नेशनल सीड्स कारपोरेशन के अधिकारियों एवं कर्मचारियों ने पूरे देश में कम समय में यथा स्थान पहुँचाया। इन किस्मों का बीज उत्पादन एवं वितरण नेशनल सीड्स कारपोरेशन ने करवाया और भारत में हरित क्रान्ति का सूत्रपात हुआ।
आज भारत खाद्यान्न में आत्मनिर्भर हैं अन्यथा 1947 में मात्र 34 करोड़ जन संख्या के भरण-पोषण के लिये USA से PL-486 स्कीम के तहत गेहूँ मंगवाया जाता था जबकि अब 140 करोड़ आबादी होने पर भी हम कुछ गेहूँ नियात कर पाते हैं।
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मृदा में नमी की जांच और फायदे
नरेंद्र कुमार, संदीप कुमार आंतिल2, सुनील कुमार। और हरदीप कलकल 1 1 कृषि विज्ञान केंद्र सिरसा, चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय 2 कृषि विज्ञान केंद्र, सोनीपत, चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय
निस्तारण की व्यावहारिक योजना पर हो अमल
पराली जलाने से हुए प्रदूषण से निपटने के दावे हर साल किए जाते हैं, लेकिन आज तक इस समस्या का स्थायी समाधान नहीं निकल सका है। यह समस्या हर साल और विकराल होती चली जा रही है।
खाद्य और पोषण सुरक्षा के लिए कारगर है कृषि वानिकी
जैसे-जैसे विश्व की आबादी बढ़ती जा रही है, लोगों की खाद्य और पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करने की चुनौती भी बढ़ रही है।
बढ़ा बजट उबारेगा कृषि को संकट से
साल था 1996 चुनाव परिणाम घोषित हो चुके थे और अटल बिहारी वाजपेयी को निर्वाचित प्रधानमंत्री के रुप में घोषित किया जा चुका था।
घट नहीं रही है भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि की 'प्रधानता'
भारतीय अर्थव्यवस्था में एक विरोधाभास पैदा हो गया है। तेज आर्थिक विकास दर के फायदे कुछ लोगों तक सीमित हो गए हैं जबकि देश की आबादी का बड़ा हिस्सा कृषि पर निर्भर है।
कृषि विकास का राह सहकारिता
भारत को 2028 तक पांच खरब डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने का इरादा है और इसमें जिन तत्वों और सैक्टर के योगदान की जरुरत पड़ेगी, उनमें एक है सहकारिता क्षेत्र।
मधुमक्खियां भी हो रही हैं प्रभावित हवा प्रदूषण से
सर्दियों का मौसम आते ही देश के कई हिस्से प्रदूषण की आगोश में समा गए हैं, खासकर देश की राजधानी दिल्ली जहां सांसों का आपातकाल लगा हुआ है।
ज्वार की रोग एवं कीट प्रतिरोधी नई किस्म विकसित
भारत श्री अन्न या मोटे अनाज का प्रमुख उत्पादक है और निर्यात के मामले में भी हमारा देश दूसरे पायदान पर है।
खरपतवारों के कारण होता है फसली नुकसान
खरपतवार प्रबंधन पर एक संयुक्त अध्ययन में खुलासा हुआ है कि हर साल भारत में फसल उत्पादन में करीब 192,202 करोड़ रुपये का नुकसान खरपतवारों के कारण होता है।
जलवायु परिवर्तन बनाम कृषि विकास...
कृषि और प्राकृतिक स्रोतों पर आधारित उद्यम न केवल भारत बल्कि ज्यादातर विकासशील देशों की आर्थिक उन्नति का आधार हैं। कृषि क्षेत्र और इसमें शामिल खेत फसल, बागवानी, पशुपालन, मत्स्य पालन, पॉल्ट्री संयुक्त राष्ट्र के दीर्घकालिक विकास लक्ष्यों खासकर शून्य भूखमरी, पोषण और जलवायु कार्रवाई तथा अन्य से जुड़े हुए हैं।