इसका दुष्परिणाम यह हो रहा है कि हमारी भूमि की उर्वरा शक्ति में निरन्तर कमी होती जा रही है। प्रारम्भ में तो मात्र प्राथमिक पोषक तत्वों की न्यूनता का आभास हुआ था परन्तु वर्तमान में अनेकों सूक्ष्म तत्वों की भी कमी के लक्षण गेहूं की फसल पर दृष्टिगोचर होने लगे हैं। धान-गेहूँ के फसल चक्र को निरन्तर अपनाने से इन सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी से गेहूं की फसल की उत्पादकता प्रभावित हो रही है। सामान्यतया हमारे देश के किसान धान की फसल में कुछ सूक्ष्म तत्वों जैसे जिंक आदि का प्रयोग तो करते हैं परन्तु धान के बाद उगाई जाने वाली गेहूँ की फसल में सूक्ष्म तत्वों की कमी के बावजूद उनका प्रयोग करने में कोताही करते हैं। सूक्ष्म पोषक तत्वों की न्यूनता के कारण गेहूँ की उपज में जहाँ 15 से 20 प्रतिशत की कमी पायी गयी है वहीं दूसरी ओर फसल की गुणवत्ता भी प्रभावित होती है। रबी फसलों में गेहूँ का मुख्य स्थान है। यद्यपि हमारे देश में हरित क्रान्ति के बाद गेहूँ के उत्पादन में आशातीत वृद्धि हुई है फिर भी उत्पादन के वांछित लक्ष्य को प्राप्त करने में अभी भी हम पीछे हैं। गेहूँ की फसल से भरपूर वार प्राप्त करने के लिए आवश्यक है कि हमारे किसान भाई उन्नतशील प्रजातियों, उर्वरकों का संतुलित प्रयोग एवं सिंचाई पर अपना ध्यान प्रमुख रूप से केन्द्रित करें। जहाँ तक उर्वरकों के संतुलित प्रयोग का प्रश्न है किसानों द्वारा गेहूँ की फसल में नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश का प्रयोग तो किया जा रहा है परन्तु सूक्ष्म पोषक तत्वों को नजरन्दाज कर दिया जाता है। सूक्ष्म पोषक तत्वों में लोहा, जस्ता, कॉपर, मालिब्डेनम, बोरॉन एवं मैंगनीज आदि का शोषण गेहूँ की फसल द्वारा किया जाता है। सामान्य रूप से गेहूँ की एक हैक्टेयर फसल से 200-250 ग्राम बोरॉन, 250-300 ग्राम कॉपर, 400-600 ग्राम जस्ता, 15-35 ग्राम मालिब्डेनम, 20003500 ग्राम लोहा तथा 375-425 ग्राम मैगनीज का शोषण किया जाता है। गेहूँ की फसल में सूक्ष्म मात्रिक तत्वों की कमी के कई लक्षण पौधों पर दृष्टिगोचर होने लगते हैं जिनका विस्तृत विवरण निम्न प्रकार है।
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मृदा में नमी की जांच और फायदे
नरेंद्र कुमार, संदीप कुमार आंतिल2, सुनील कुमार। और हरदीप कलकल 1 1 कृषि विज्ञान केंद्र सिरसा, चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय 2 कृषि विज्ञान केंद्र, सोनीपत, चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय
निस्तारण की व्यावहारिक योजना पर हो अमल
पराली जलाने से हुए प्रदूषण से निपटने के दावे हर साल किए जाते हैं, लेकिन आज तक इस समस्या का स्थायी समाधान नहीं निकल सका है। यह समस्या हर साल और विकराल होती चली जा रही है।
खाद्य और पोषण सुरक्षा के लिए कारगर है कृषि वानिकी
जैसे-जैसे विश्व की आबादी बढ़ती जा रही है, लोगों की खाद्य और पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करने की चुनौती भी बढ़ रही है।
बढ़ा बजट उबारेगा कृषि को संकट से
साल था 1996 चुनाव परिणाम घोषित हो चुके थे और अटल बिहारी वाजपेयी को निर्वाचित प्रधानमंत्री के रुप में घोषित किया जा चुका था।
घट नहीं रही है भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि की 'प्रधानता'
भारतीय अर्थव्यवस्था में एक विरोधाभास पैदा हो गया है। तेज आर्थिक विकास दर के फायदे कुछ लोगों तक सीमित हो गए हैं जबकि देश की आबादी का बड़ा हिस्सा कृषि पर निर्भर है।
कृषि विकास का राह सहकारिता
भारत को 2028 तक पांच खरब डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने का इरादा है और इसमें जिन तत्वों और सैक्टर के योगदान की जरुरत पड़ेगी, उनमें एक है सहकारिता क्षेत्र।
मधुमक्खियां भी हो रही हैं प्रभावित हवा प्रदूषण से
सर्दियों का मौसम आते ही देश के कई हिस्से प्रदूषण की आगोश में समा गए हैं, खासकर देश की राजधानी दिल्ली जहां सांसों का आपातकाल लगा हुआ है।
ज्वार की रोग एवं कीट प्रतिरोधी नई किस्म विकसित
भारत श्री अन्न या मोटे अनाज का प्रमुख उत्पादक है और निर्यात के मामले में भी हमारा देश दूसरे पायदान पर है।
खरपतवारों के कारण होता है फसली नुकसान
खरपतवार प्रबंधन पर एक संयुक्त अध्ययन में खुलासा हुआ है कि हर साल भारत में फसल उत्पादन में करीब 192,202 करोड़ रुपये का नुकसान खरपतवारों के कारण होता है।
जलवायु परिवर्तन बनाम कृषि विकास...
कृषि और प्राकृतिक स्रोतों पर आधारित उद्यम न केवल भारत बल्कि ज्यादातर विकासशील देशों की आर्थिक उन्नति का आधार हैं। कृषि क्षेत्र और इसमें शामिल खेत फसल, बागवानी, पशुपालन, मत्स्य पालन, पॉल्ट्री संयुक्त राष्ट्र के दीर्घकालिक विकास लक्ष्यों खासकर शून्य भूखमरी, पोषण और जलवायु कार्रवाई तथा अन्य से जुड़े हुए हैं।