आधुनिक युग में बढ़ती जनसंख्या को दृष्टिगत रखते हुए उद्यानिकी फसलों की मांग में पिछले दशक की उपेक्षा काफी ज्यादा बढ़ोतरी पाई गई है जिसको पूरा कर पाना अपने आप में एक चुनौती है। परन्तु इस सभी है प्रकार की चुनौतियों को विज्ञान के द्वारा दूर करने का प्रयास किया जा रहा है जिसमें काफी हद तक सफलता पाई जा चुकी है।
क्या है पौध उत्तक संवर्धन: पौध उत्तक संवर्धन एक ऐसी विधा है जिसमें पौधे के किसी भी भाग जैसे जड़, तना, फूल, पराग आदि को लेकर परखनली या अन्य पात्र में कृत्रिम संवर्धन माध्यम पर संवर्धित किया जा सकता है। विभिन्न वैज्ञानिकों द्वारा किए गए शोध में पता चला है कि पौधे के प्रत्येक कोशिका में पूर्ण पौधे का निर्माण करने की क्षमता होती है। अत: जैव प्रौद्योगिकी उद्यानिकी फसलों के अनुवांशिक सुधार या उनके उत्पादन वृद्धि में अमूल्य योगदान दे रहा है।
पौध उत्तक संवर्धन की आवश्यकता:
1. उद्यानिकी उत्पादों की मांग में वृद्धि: दिन प्रतिदिन जनसंख्या बढ़ती जा रही है जिसके लिए भोजन की उपलब्धता एक चुनौती है। उद्यानिकी फसल जैसे सब्जियां, फल, दवाइयां, फूल इत्यादि की पूर्ति परंपरागत विधि द्वारा नहीं की जा सकती। अतः उत्तक संवर्धन के द्वारा शीघ्र उपज देने वाली, रोग रोधी एवं अधिक उपज देने वाली प्रजातियों को विकसित करके मांग को पूर्ण कर सकते हैं।
2. पौधों की उपलब्धता: उत्तक संवर्धन एक ऐसी विधा है जिसमें पौधे को तैयार करते समय इन पर बाह्य वातावरण का प्रभाव नहीं पड़ता। अतः किसी भी उद्यानिकी फसलों के पौधे पूरे वर्ष भर किसानों को उपलब्ध कराए जा सकते हैं।
3. सीमित समय एवं स्थान: उत्तक संवर्धन तकनीकी के द्वारा सीमित समय एवं स्थान में अत्याधिक संख्या में पौधों को सुगमता पूर्वक तैयार किया जा सकता है।
4. सुगम पौध प्रबंधन: सीमित स्थान में ज्यादा पौधे तैयार करने से पौधों की देखभाल कम लागत में सुगमता पूर्वक की जा सकती है।
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गोभीवर्गीय सब्जियों के रोग और उनकी रोकथाम
सर्दी में गोभीवर्गीय सब्जियों (फूलगोभी, बंदगोभी व गांठगोभी) का बहुत महत्व है क्योंकि सर्दी में सब्जियों के आधे क्षेत्रफल में यही सब्जियां बोई जाती हैं। इन सब्जियों को कैल्शियम, मैग्नीशियम, फॉस्फोर्स, विटामिन ए एवं सी इत्यादि का अच्छा स्रोत माना जाता है।
हाई-टेक पॉलीहाउस खेती में अधिक उत्पादन के लिए कंप्यूटर की भूमिका
भारत देश में आज के समय जनसंख्या तेजी से बढ़ रही है जिससे रहने के लिए लगातार कृषि योग्य भूमि का उपयोग कारखाने लगाने, मकान बनाने में हो रहा है। कृषि योग्य भूमि कम होने से जनसंख्या का भेट भरने की समस्या से बचने के लिए सरकार ने विभिन्न योजनाएं चला रखी हैं जिससे किसान कम लागत में अधिक मुनाफा कमा सकें।
सरसों की खेती अधिक उपज के लिए उन्नत शस्य पद्धतियाँ
सरसों (Brassica spp.) एक महत्वपूर्ण तिलहनी फसल है, जो पोषण और व्यवसायिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण है। भारत में सरसों का उपयोग मुख्यतः खाद्य तेल, मसाले और औषधि के रूप में किया जाता है।
गेहूं में सूक्ष्म पोषक तत्वों का महत्व
गेहूं में मुख्य पोषक तत्वों का संतुलित प्रयोग अति आवश्यक है। प्रायः किसान भाई उर्वरकों में डी.ए.पी. व यूरिया का अधिक प्रयोग करते हैं और पोटाश का बहुत कम प्रयोग करते हैं।
पॉलीटनल में सब्जी पौध तैयार करना
देश में व्यवसायिक सब्जी उत्पादन को बढ़ावा देने में सब्जियों की स्वस्थ पौध उत्पादन एक महत्वपूर्ण विषय है जिस पर आमतौर से किसान कम ध्यान देते हैं।
क्या है मनरेगा की कृषि में भागेदारी?
ग्रामीण विकास मंत्रालय की ओर से कमियां पूरी करें और गुणवत्ता बढ़ाने के लिए संबंधित विभागों से कनवरजैंस के लिए जोर दिया जाता है। जैसे खेतीबाड़ी, बागवानी, वानिकी, जल संसाधन, सिंचाई, प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना, नेशनल रूरल लिवलीहुड मिशन और अन्य प्रोग्रामों के सहयोग से जो कि मनरेगा अधीन निर्माण की संपति की क्वालिटी को सुधारना और टिकाऊ बनाया जा सके।
अलसी की फसल के कीट व रोग एवं उनका नियंत्रण
अलसी की फसल को विभिन्न प्रकार के रोग जैसे गेरुआ, उकठा, चूर्णिल आसिता तथा आल्टरनेरिया अंगमारी एवं कीट यथा फली मक्खी, अलसी की इल्ली, अर्धकुण्डलक इल्ली चने की इल्ली द्वारा भारी क्षति पहुंचाई जाती है जिससे अलसी की फसल के उत्पादन में भरी कमी आती है।
मटर की फसल के कीट एवं रोग और उनका नियंत्रण कैसे करें
अच्छी उपज के लिए मटर की फसल के कीट एवं रोग की रोकथाम जरुरी है। मटर की फसल को मुख्य रोग जैसे चूर्णसिता, एसकोकाईटा ब्लाईट, विल्ट, बैक्टीरियल ब्लाईट और भूरा रोग आदि हानी पहुचाते हैं।
कृषि-वानिकी और वनों व वृक्षों का धार्मिक एवं पर्यावरणीय महत्व
कृषि-वानिकी : कृषि वानिकी भू-उपयोग की वह पद्धति है जिसके अंतर्गत सामाजिक तथा पारिस्थितिकीय रुप से उचित वनस्पतियों के साथ-साथ कृषि फसलों या पशुओं को लगातार या क्रमबद्ध ढंग से शामिल किया जाता है। कृषि वानिकी में खेती योग्य भूमि पर फसलों के साथ-साथ वृक्षों को भी उगाया जाता है। इस प्रणाली द्वारा उत्पाद के रुप में ईंधन की लकड़ी, हरा चारा, अन्न, मौसमी फल इत्यादि आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं। इस प्रणाली को अपनाने से भूमि की उपयोगिता बढ़ जाती है।
'रिचेस्ट फार्मर ऑफ इंडिया' अवार्ड प्राप्त करने वाली सफल महिला किसान-नीतुबेन पटेल
नीतूबेन पटेल ने जैविक कृषि में उत्कृष्ट योगदान देकर \"सजीवन\" नामक फार्म की स्थापना की, जो 10,000 एकड़ में 250 जैविक उत्पाद उगाता है। उन्होंने 5,000 किसानों और महिलाओं को प्रशिक्षित कर जैविक खेती में प्रेरित किया।