इस सब्जी की भारत में छोटे कस्बों से लेकर बड़े शहरों में बहुत मांग है, क्योंकि यह अनेक प्रोटीनों के साथ खाने में भी स्वादिष्ट होती है जिसे हर मनुष्य इस सब्जी को पसंद करता है। इसलिए इसकी खेती को व्यावसायिक भी कहा जाता है। उत्पादक बन्धु यदि इसकी खेती वैज्ञानिक विधि से करें, तो इसकी फसल से अच्छा उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है। इस लेख में तोरई की खेती उन्नत तकनीक से कैसे करें, की जानकारी का उल्लेख किया गया है।
तोरई की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु
तोरई की सफल खेती के लिए उष्ण और नम जलवायु उत्तम मानी गई। है। अंकुरण और फसल बढ़वार के लिए 20 से 30 डिग्री सेंटीग्रेट तापक्रम होना अतिअवाश्यक है।
तोरई की खेती के लिए उपयुक्त भूमि
तोरई को विभिन्न प्रकार की मिट्टी में उगाया जा सकता है, किन्तु उचित जल निकास धारण क्षमता वाली जीवांश युक्त हल्की दोमट भूमि इसकी सफल खेती के लिए सर्वोत्तम मानी गई है, वैसे उदासीन पी एच मान वाली मिट्टी इसके लिए अच्छी रहती है। नदी किनारे वाली भूमि भी इसकी खेती के लिए उपयुक्त रहती है, कुछ अम्लीय भूमि में भी इसकी खेती की जा सकती है।
तोरई की खेती के लिए खेत की तैयारी
तोरई के सफल उत्पादन के लिए पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करें। इसके बाद 2 से 3 बार हैरो या कल्टीवेटर से मिट्टी को भुरभुरी बना लें और पाटा लगाकर खेत को समतल बना लें।
तोरई की खेती के लिए उन्नत किस्में
पंजाब सदाबहार - पौधे मध्यम आकार के होते हैं। फल 20 सैंटीमीटर लम्बे और 3 से 5 सैंटीमीटर चौड़े होते हैं। फल पतले, कोमल, गहरे हरे रंग के और धारीदार होते हैं।
पूसा नसदार - इस किस्म के फलों पर उभरी धारियां बनी रहती है। इसके फल हरे हल्के पीले रंग के होते हैं, जो बुवाई के 80 से 90 दिन बाद तैयार हो जाते हैं। यह किस्म जायद में उगाने के लिए उपयुक्त है। इसके बीजों पर छोटे-छोटे उभार होते हैं।
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मृदा में नमी की जांच और फायदे
नरेंद्र कुमार, संदीप कुमार आंतिल2, सुनील कुमार। और हरदीप कलकल 1 1 कृषि विज्ञान केंद्र सिरसा, चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय 2 कृषि विज्ञान केंद्र, सोनीपत, चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय
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पराली जलाने से हुए प्रदूषण से निपटने के दावे हर साल किए जाते हैं, लेकिन आज तक इस समस्या का स्थायी समाधान नहीं निकल सका है। यह समस्या हर साल और विकराल होती चली जा रही है।
खाद्य और पोषण सुरक्षा के लिए कारगर है कृषि वानिकी
जैसे-जैसे विश्व की आबादी बढ़ती जा रही है, लोगों की खाद्य और पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करने की चुनौती भी बढ़ रही है।
बढ़ा बजट उबारेगा कृषि को संकट से
साल था 1996 चुनाव परिणाम घोषित हो चुके थे और अटल बिहारी वाजपेयी को निर्वाचित प्रधानमंत्री के रुप में घोषित किया जा चुका था।
घट नहीं रही है भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि की 'प्रधानता'
भारतीय अर्थव्यवस्था में एक विरोधाभास पैदा हो गया है। तेज आर्थिक विकास दर के फायदे कुछ लोगों तक सीमित हो गए हैं जबकि देश की आबादी का बड़ा हिस्सा कृषि पर निर्भर है।
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भारत को 2028 तक पांच खरब डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने का इरादा है और इसमें जिन तत्वों और सैक्टर के योगदान की जरुरत पड़ेगी, उनमें एक है सहकारिता क्षेत्र।
मधुमक्खियां भी हो रही हैं प्रभावित हवा प्रदूषण से
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ज्वार की रोग एवं कीट प्रतिरोधी नई किस्म विकसित
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खरपतवार प्रबंधन पर एक संयुक्त अध्ययन में खुलासा हुआ है कि हर साल भारत में फसल उत्पादन में करीब 192,202 करोड़ रुपये का नुकसान खरपतवारों के कारण होता है।
जलवायु परिवर्तन बनाम कृषि विकास...
कृषि और प्राकृतिक स्रोतों पर आधारित उद्यम न केवल भारत बल्कि ज्यादातर विकासशील देशों की आर्थिक उन्नति का आधार हैं। कृषि क्षेत्र और इसमें शामिल खेत फसल, बागवानी, पशुपालन, मत्स्य पालन, पॉल्ट्री संयुक्त राष्ट्र के दीर्घकालिक विकास लक्ष्यों खासकर शून्य भूखमरी, पोषण और जलवायु कार्रवाई तथा अन्य से जुड़े हुए हैं।