भारत में शहतूत की खेती और उपयोग
Modern Kheti - Hindi|15th June 2024
शहतूत को वानस्पतिक रूप में मोरस अल्बा के नाम से जाना जाता है। शहतूत के पत्तों का रेशम उत्पादन में प्राथमिकता के कारण एक प्रमुख आर्थिक घटक है क्योंकि प्रति इकाई क्षेत्र में उत्पादित पत्ती की गुणवत्ता और मात्रा का कोकून की फसल पर सीधा असर पड़ता है।
इमरान अली, अवधेश कुमार, प्रभात कुमार, अभिषेक सिंह, बृजेश पटेल
भारत में शहतूत की खेती और उपयोग

भारत में, अधिकांश राज्यों ने उत्कृष्ट परिणामों के साथ रेशम उत्पादन को एक महत्वपूर्ण कृषि-उद्योग के रूप में अपनाया है। शहतूत से काफी औषधीय जैसे कि रक्त टॉनिक, चक्कर आना, कब्ज, टिनिटस के उपचार के लिए प्रयोग किया जाता है। इसे फल जूस बनाने के लिए भी प्रयोग किया जाता है जो कि कोरिया, जापान और चीन में काफी प्रसिद्ध है। यह एक सदाबहार वृक्ष होता है जिसकी औसतन ऊंचाई 40-60 फीट होती है। इसके फूलों के साथ-साथ ही जामुनी-काले रंग के फल होते है। भारत में पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, पश्चिम बंगाल, कर्नाटका, आंध्रा प्रदेश और तामिलनाडू मुख्य शहतूत उगने के मुख्य राज्य हैं।

खेती के अंतर्गत प्रजातियां और किस्में

मोरस वंश की लगभग 68 प्रजातियां हैं। इनमें से अधिकांश प्रजातियां एशिया में पाई जाती हैं, विशेषकर चीन (24 प्रजातियां) और जापान (19) में। महाद्वीपीय अमेरिका अपनी मोरस प्रजाति में भी समृद्ध है। अफ्रीका, यूरोप और निकट पूर्व में जीनस का प्रतिनिधित्व बहुत क है और यह ऑस्ट्रेलिया में मौजूद नहीं है।

भारत में मोरस की कई प्रजातियां हैं, जिनमें मोरस अल्बा, एम. इंडिका शामिल हैं। एम. सेराटा और एम. लेविगाटा हिमालय में जंगली रूप से उगते हैं। एम. मल्टीकौलिस, एम. नाइग्रा, एम. साइनेंसिस और एम. फिलिपिनेंसिस से संबंधित कई किस्में पेश की गई हैं। शहतूत की अधिकांश भारतीय किस्में एम. इंडिका से संबंधित हैं।

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