देश का भविष्य हैं प्रकृति की गोद में उगने वाले लंबे वनस्पतिक रेशे
Modern Kheti - Hindi|15th October 2024
भारत में जूट की खेती सदियों से होती चली आ रही है और यह उद्योगों को कच्चा माल उपलब्ध कराने तथा रोजगार के व्यापक अवसर पैदा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती चली आ रही है। 60 के दशक के दौरान जूट भारत के लिए एक महत्वपूर्ण विदेशी मुद्रा अर्जक था और 70 के दशक के "स्वर्णिम काल" तक इस खेती में चतुर्मुखी विकास हुआ। 80 के दशक के दौरान गिरावट शुरू हुई और कृत्रिम तंतुओं से कठोर प्रतिस्पर्धा के कारण जूट का गौरव घट गया।
डॉ. सुभाष चंद्र साहा एवं के. एल. अहिरवार
देश का भविष्य हैं प्रकृति की गोद में उगने वाले लंबे वनस्पतिक रेशे

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली के अधीनस्थ निर्जाफ्ट के रूप में लोकप्रिय राष्ट्रीय पटसन एवं संवर्गी रेशा प्रौद्योगिकी अनुसंधान संस्थान जूट और संवर्ग रेशों पर शोध करने वाला अग्रणी अनुसंधान केन्द्र है। विगत वर्षों में संस्थान ने प्रौद्योगिकी उन्नति के साथ जूट रेशा के विविध उपयोग खोज निकाले और जूट अपने खोए हुए गौरव को फिर से हासिल करने के साथ ही वैश्विक बाजार में एक महत्वपूर्ण प्राकृतिक रेशा के रूप में उभर कर सामने आया। जूट के पौधे मुख्यत: पर्यावरण के मित्र हैं, क्योंकि ये बड़ी मात्रा में CO गैस की खपत करते हैं जो ग्रीन हाऊस के प्रभाव को कम करता है। इसके अलावा जूट की पत्तियां खेतों में गिरकर विलुप्त हो जाती हैं और मिट्टी को पोषण प्रदान करती हैं।

निर्जाफ्ट अपने हितधारकों के बीच जूट आधारित प्रौद्योगिकीयों को विकसित करने के साथ ही उन्हें सदैव बढ़ावा देता चला आया है। अपनी इस भावी दृष्टि से निर्जाफ्ट को एहसास हुआ कि अगर रेशा का उपयोग अन्य मूल्यवर्धित इलाकों में किया जाए तो अक्षय रेशा की उदास स्थिति इसके भविष्य को पुनर्जीवित कर सकती है। इसका संभावित क्षेत्र इसके विविध उपयोग हैं और पारंपरिक उपयोगों को छोड़कर तकनीकी वस्त्रों के क्षेत्र में इनका भारी मात्रा में उपयोग हो रहा है। इनके अलावा लुगदी, कागज, पार्टिकल बोर्ड, मिश्र उत्पाद, बिनबुने कपड़े, घरेलू वस्त्र और हस्तशिल्प वस्तुएं इसके अन्य क्षेत्र में शामिल हैं।

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रोगाणुरोधी प्रतिरोध यानी एएमआर एक ऐसी 'मूक महामारी', है जो न केवल इंसान और मवेशियों के स्वास्थ्य बल्कि खाद्य सुरक्षा और विकास को भी गंभीर रूप से प्रभावित कर रही है। आज जिस तरह से वैश्विक स्तर पर कृषि क्षेत्र में एंटीबायोटिक्स दवाओं का बेतहाशा उपयोग हो रहा है, वो चिंता का विषय है। सैंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमैंट (सीएसई) लम्बे समय से रोगाणुरोधी प्रतिरोध के बढ़ते खतरे को लेकर चेताता रहा है।

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