जलवायु परिवर्तन बनाम कृषि विकास...
Modern Kheti - Hindi|15th November 2024
कृषि और प्राकृतिक स्रोतों पर आधारित उद्यम न केवल भारत बल्कि ज्यादातर विकासशील देशों की आर्थिक उन्नति का आधार हैं। कृषि क्षेत्र और इसमें शामिल खेत फसल, बागवानी, पशुपालन, मत्स्य पालन, पॉल्ट्री संयुक्त राष्ट्र के दीर्घकालिक विकास लक्ष्यों खासकर शून्य भूखमरी, पोषण और जलवायु कार्रवाई तथा अन्य से जुड़े हुए हैं।
जलवायु परिवर्तन बनाम कृषि विकास...

वैश्विक जनसंख्या आंकड़ों के मुताबिक, साल 2020 में भारत की आबादी 138 करोड़ तक पहुंच चुकी है, जो दुनियाभर की आबादी का 17.7 प्रतिशत है। आजादी के बाद से भारत की आबादी में 3.35 गुना बढ़ोतरी हुई है और साल 2027 तक चीन को पीछे छोड़कर भारत दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला देश बन जाएगा। लेकिन, भारत के पास दुनिया की भूमि का महज 2.4 प्रतिशत हिस्सा है।

कृषि जनगणना 2015-2016 के मुताबिक, भारत में एक किसान के पास औसतन 1.08 हैक्टेयर कृषि योग्य भूमि है। भारत के राज्यों में मौजूद आधे किसान सीमांत खेतिहर (1 हैक्टेयर) और बाकी छोटे किसान (1 से 2 हैक्टेयर भूमि) हैं। ये किसान कई तरह की समस्याएं जैसे खेती के लिए बीज, खाद व अन्य चीजों की सप्लाई, लोन, खराब परिवहन और बाजार सुविधा की समस्या से जूझ रहे हैं। देश के कुल खाद्यान्न उत्पादन में छोटे और सीमांत किसानों की हिस्सेदारी 60 प्रतिशत (49 प्रतिशत हिस्सेदारी चावल में, 40 प्रतिशत गेहूं में, 27 प्रतिशत हिस्सेदारी दाल में, 29 प्रतिशत हिस्सेदारी मोटे अनाज में और आधा हिस्सेदारी फल और सब्जी में ) है।

देश की आबादी के 58 प्रतिशत हिस्से की कमाई का प्राथमिक स्रोत खेती है। कृषि और प्राकृतिक स्रोतों पर आधारित उद्यम न केवल भारत बल्कि ज्यादातर विकासशील देशों की आर्थिक उन्नति का आधार हैं। कृषि क्षेत्र और इसमें शामिल खेत फसल, बागवानी, पशुपालन, मत्स्य पालन, पॉल्ट्री संयुक्त राष्ट्र के दीर्घकालिक विकास लक्ष्यों खासकर शून्य भूखमरी, पोषण और जलवायु कार्रवाई तथा अन्य से जुड़े हुए हैं।

सरकारी अनुमानों के मुताबिक, साल 2019-2020 में भारत का खाद्यान्न उत्पादन लक्ष्य 291.95 मिलियन टन था और साल 2020-2021 के लिए सरकार ने 298.3 मिलियन टन का लक्ष्य रखा है, जो पिछले साल के उत्पादन के मुकाबले 2 प्रतिशत अधिक है। हालांकि, देश की आबादी की जरूरतों को पूरा करने और आय में इजाफे के लिए साल 2050 तक उत्पादन को दोगुना करना होगा। ऐसे में भारत की खाद्य सुरक्षा और सतत विकास लक्ष्यों को पूरा करने में छोटे और सीमांत किसानों की महती भूमिका है।

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