एक बार की बात है. एक तालाब में क्रियो नाम का मगरमच्छ रहता था. क्रियो काफी बड़ा था और वह दिखने में भी बहुत खतरनाक लगता था. उस तालाब का पानी बहुत मीठा था, पर जंगल के जानवर वहां पानी पीने तभी आते थे जब उन्हें कहीं और पानी नहीं मिलता था. इस का कारण था क्रियो.
क्रियो उन्हें आसानी से पानी नहीं पीने देता था. वह खुद को तालाब का मालिक समझता था. पानी पीने से पहले क्रियो की एक ही शर्त होती थी कि पानी पीने वाले जानवर को उस की पीठ पर बैठ कर सवारी करनी होगी. हालांकि यह बात सभी जानवरों को बहुत अच्छी लगती थी कि मगरमच्छ की पीठ पर बैठ कर पूरे तालाब की सैर की जाए, लेकिन चाहे छोटा हो या बड़ा कोई भी जानवर उस की पीठ पर बैठना नहीं चाहता था, क्योंकि जितनी देर वह उस की पीठ पर बैठता था, उस का कलेजा मुंह को आ जाता.
क्रियो पानी में लहराते हुए तैरता था. बीचबीच में वह उछलता भी था, यदि कोई उसे कस कर न पकड़े तो तालाब के किनारे चट्टानों पर गिर कर उसके चोटिल होने की भी आशंका रहती थी.
क्रियो का जानवरों को अपनी सवारी करवाने का उद्देश्य उन्हें आनंद देना नहीं था, बल्कि डराना और परेशान करना था. इसलिए जानवर उस तालाब के आसपास कम ही आते थे.
एक बार जंगल में काफी समय तक बारिश नहीं हुई. जंगल के अन्य तालाबों का पानी भी सूख रहा था, लेकिन क्रियो वाले तालाब में अभी भी काफी पानी था. इसी बारे में विचार करने के लिए सारे जानवरों ने एक सभा बुलाई और विचारविमर्श किया कि यदि क्रियो की पीठ पर सवारी करने के बाद पानी मिला तो भी क्या मजा आएगा. हालांकि जब वह पीठ पर किसी को सवारी कराता है तो ऊपर की सांस ऊपर और नीचे की सांस नीचे अटक जाती है.
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