अशोक बाबूजी भी इसी परिवार का हिस्सा थे. रजिया और आफताब की 20 साल की बेटी आसमां आज भी अशोक बाबूजी से 5 साल की बच्ची की तरह लाड़ दिखाती है.
आफताब के एक स्कूटर हादसे पर अशोक बाबूजी ने किसी फरिश्ते की तरह इस परिवार की मदद की थी. उस हादसे में अपनी टांग गंवाने के बाद आफताब की निर्भरता अशोक बाबूजी पर और ज्यादा बढ़ गई थी.
इधर आसमां की शादी की बात चल रही थी. वह बहुत खूबसूरत और पढ़ीलिखी थी. उस के लिए एक से बढ़ कर एक परिवारों के रिश्ते आ रहे थे.
आफताब की खाला की सख्त हिदायत थी कि उन के समाज में ज्यादा दूर के लोगों से रिश्ते नहीं किए जाते और उन्हें अपनी बेटी का निकाह अपने ही किसी एक परिचित परिवार में करना चाहिए.
खाला के सुझाव को दरकिनार कर रात को खाने की टेबल पर आफताब ने अपनी बेटी से कहा, "बेटा, हम तुम्हारे ऊपर अपनी पसंद नहीं थोपेंगे. तुम अपनी पसंद के लड़के से शादी कर सकती हो, भले ही वह किसी भी मजहब या जाति का हो, हमें फर्क नहीं पड़ता है."
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