बिजली की आंखों के सामने 3 साल पहले का सीन तैर गया. एक घटना ने उस के कीमती 3 साल चुरा लिए थे. पर दूसरी ओर वह खुश भी थी कि इन 3 सालों के अंदर ही वह इस दलदल से निकल पाई थी...
कुछ नक्सली आए थे बिजली के गांव में उस दिन. 20-25 नक्सली कंधे पर बंदूक टांगे उस के गांव से गुजर रहे थे. वह अपने घर के बरामदे से छिप कर उन्हें देख रही थी. उस के मन में डर तो था ही, पर कौतूहल भी था. वह नक्सलियों के बारे में तरहतरह के किस्से सुनती थी. वह उन की निगाहों से बचते हुए उन्हें देखना चाहती थी, पर एक नक्सली ने उसे देख लिया था.
“ऐ लड़की, इधर सुन..." उस नक्सली ने बिजली को बुलाया था.
डरीसहमी बिजली उस नक्सली के सामने जा खड़ी हुई थी.
"छातानगर का रास्ता जानती है ? " उस नक्सली ने पूछा था.
“हां... " बिजली ने सहम कर हामी भरी थी.
“चलो, रास्ता दिखाओ..." उस नक्सली ने डपट कर बिजली को साथ चलने के लिए कहा था.
एक बार बिजली ने पलट कर अपने घर की ओर देखा था. पिता तो था नहीं उस का, उस के जन्म लेने के 2 साल के अंदर उस की मौत हो गई थी. मां दिख जाती तो उस के पास भाग जाती, पर वह भी दिखी नहीं. शायद किसी काम से कहीं गई हुई थी. वह नक्सलियों के साथ सरहद के पास आ गई.
बिजली ने उंगली से इशारा कर बताया था, “उस ओर है छातानगर."
"अरी, साथ चल... " नक्सली ने बिजली की बांह पकड़ ली थी. बेचारी 11-12 साल की बच्ची क्या करती ? साथ चली गई. नक्सली को रास्ता क्या पता नहीं था? वह तो अपने दल में उसे शामिल करने के लिए ही लाया था और फिर कभी वह वापस नहीं आ पाई.
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