बातें करना एक कला है, जिससे बिगड़ी बात बन सकती है और कभी बनी हुई बात बिगड़ भी सकती है, इसलिए बातें हमेशा संयम के साथ करनी चाहिए। लेकिन हम अक्सर सुनते हैं कि महिलाएं बहुत बातूनी होती हैं। एक बार बोलना शुरू करती हैं तो बस... तो क्या वे बनी हुई बात बिगाड़ देती हैं? आज जबकि महिलाओं को वैसी नौकरियों में प्राथमिकता दी जा रही है, जिनमें लोगों के साथ व्यवहार कुशलता बनाने की जरूरत होती है, तो फिर इन दोनों बातों में इतना विरोधाभास क्यों है? एमबीए कर रहे विनीत अपनी एक महिला मित्र के बारे में हंसते हुए बताते हैं, "मेरी मित्र इतनी बातूनी है कि जब मैं उससे फोन पर बात करता हूं, तो फोन को खुला रखकर अपना काम निपटा लेता हूं और उसे अपनी बातों में कुछ मालूम ही नहीं चलता।"
आमतौर पर महिलाओं को बातूनी के खिताब से नवाजा जाता है। एक शोध में भी यह साबित हो चुका है, जिसके अनुसार, एक महिला एक दिन में औसत 20 हजार शब्द बोलती है, जबकि पुरुषों के लिए यह आंकड़ा 13 हजार शब्द प्रतिदिन है, लेकिन पिछले दिनों हुआ एक अन्य अध्ययन इससे अलग रोचक बात बताता है कि महिलाओं के मुकाबले पुरुष ज्यादा बातूनी होते हैं, लेकिन वे उतनी सफाई से अपनी बात कह नहीं पाते। पुरुष महिलाओं के मुकाबले ज्यादा बातें करते हैं। कई बार तो वे सिर्फ बात करने के लिए ही बात करते हैं, भले ही उसका कोई मतलब न हो। ऐसा वे इसलिए करते हैं, क्योंकि महिलाओं के मुकाबले वे अपनी बातों को बेहतर तरीके से प्रस्तुत नहीं कर पाते। ऐसा क्यों होता है, यह जानना दिलचस्प हो सकता है। कुछ शोध पुरुषों के ज्यादा बातूनी होने पर मुहर लगाते हैं, हालांकि कुछ प्रयोग ऐसे भी रहे, जो यह कहते हैं कि बातूनी होने या न होने का महिला या पुरुष होने से कोई संबंध ही नहीं है। अब अगर ऐसा है तो फिर महिलाओं को ज्यादा बातूनी मानने के पीछे सच क्या है? इस विषय पर शोधकर्ताओं ने अपने-अपने तरीकों से शोध किए, परंतु अभी तक किसी तरह के प्रामाणिक और सटीक नतीजे प्राप्त नहीं हुए हैं।
■ भाता है साथ-साथ काम
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