तेज और ऊंची आवाज में बात करने वाली महिलाओं को मतलबी भी समझा जा सकता है, जो उनकी इमेज पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है।
सोसाइटी में पिछले महीने ही आई संजना जब किटी पार्टी की मेंबर बनी तो पहली बार सभी ने उसका खुले दिल से स्वागत किया। पढ़ी-लिखी संजना पहले प्राइवेट स्कूल में पढ़ाती थी, लेकिन मां बनने के बाद उसने जॉब छोड़ दी और घर पर ही ट्यूशन देना शुरू कर दिया। संजना में लोगों को अपना बनाने सभी गुण हैं, लेकिन धीरे-धीरे सभी दोस्त उससे दूरी बनाने लगे हैं और कारण बड़ा अजीब-सा है। दरअसल, संजना बहुत तेज बोलती है! जब तक कोई उसका पहला वाक्य समझे, वह तब तक कई वाक्य बोल चुकी होती है। इस तेजी में वह कभी-कभी ऐसी बातें भी बोल जाती है, जो कि दिल को चुभ जाती हैं और सभी एक-दूसरे का मुंह ताकते रह जाते हैं। नतीजा यह है कि कुछ दिन पहले तक जो संजना सबकी चहेती थी, उसकी जल्दी-जल्दी बोलने की आदत से सोसाइटी के अन्य लोग उससे दूर रहने लगे हैं और बात करने से कतराते हैं। संजना की तो जैसे-तैसे चल जाएगा, लेकिन साइना तो जॉब करती है। उसके तेज बोलने से पूरा दप्तर परेशान है। मीटिंग में उसे बोलने का मौका न के बराबर दिया जाता है, क्योंकि जब वह बोलती है तो रुकने का नाम नहीं लेती। सहकर्मी बोलने के दौरान उसके सांस लेने का इंतजार करते हैं, ताकि उसे रोककर किसी दूसरे को बोलने का मौका दिया जा सके! लेकिन ऐसा क्यों होता है? आखिर तेज बोलने की यह आदत आती कहां से है और इसे कैसै सुधारा जा सकता है?
■ बचपन के अनुभव
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शाप भी देते हैं पितर
धर्मशास्त्रों ने श्राद्ध न करने से जिस भीषण कष्ट का वर्णन किया है, वह अत्यंत मार्मिक है। इसीलिए शास्त्रों में पितृपक्ष में पूर्वजों का श्राद्ध करने को कहा गया है।
हर तिथि का अलग श्राद्धफल
पितृपक्ष में पितरों के निमित्त तिथियों का ध्यान रखना भी जरूरी है। शास्त्रों के अनुसार, तिथि अनुसार किए गए श्राद्ध का फल भी अलग-अलग होता है।
पितृदोष में पीपल की परिक्रमा
शास्त्रों के अनुसार, पितृपक्ष में पितृदोष दूर करने के उपाय जरूर करने चाहिए, ताकि पितर प्रसन्न होकर सुख-समृद्धि का आशीर्वाद दें।
पिंडदान के अलग-अलग विधान
व्यक्ति का अंत समय कैसा रहा, इस आधार पर उसकी श्राद्ध विधि भी विशेष हो जाती है। अलग-अलग मृत्यु स्थितियों के लिए अलग-अलग तरह से पिंडदान का विधान है।
पितृपक्ष में दान
भारतीय संस्कृति में दान की महत्ता अपरंपार है। लेकिन पितृ पक्ष के दौरान दान का विशेष महत्व है। कुछ वस्तुओं के दान को तो महादान माना गया है।
जैसी श्रद्धा, वैसा भोज
पितृपक्ष में ब्राह्मण भोज जरूरी है। लेकिन अगर कोई व्यक्ति अत्यंत गरीब है तो वह जल में काले तिल डालकर ही पूर्वजों का तर्पण कर सकता है।
स्त्रियों को भी है अधिकार
यदि परिवार में कोई पुरुष सदस्य नहीं है तो ऐसी स्थिति में स्त्री भी संकल्प लेकर श्राद्ध कर सकती है। शास्त्रों ने इसके लिए कुछ नियम बताए हैं।
निस्संतान के श्राद्ध की विधि
शास्त्रों के अनुसार, पुत्र ही पिता का श्राद्ध कर्म करता है। ऐसे में जो लोग निस्संतान थे, उन्हें तृप्ति कैसे मिलेगी ? शास्त्रों ने उनके लिए भी कुछ विधान बताए हैं।
पंडित न हों तो कैसे करें पिंडदान
पिंडदान के लिए यदि कोई पंडित उपलब्ध नहीं हो पा रहा है तो ऐसे में शास्त्रों ने इसका भी मार्ग बताया है, जिससे आप श्राद्ध कर्म संपन्न कर सकते हैं।
किस दिशा से पितरों का आगमन
पितरों के तर्पण में कुछ वास्तु नियम भी बहुत महत्वपूर्ण हैं, जिनके पालन से तर्पण का अधिकतम लाभ होता है और पितरों की आत्मा को शांति मिलती है।