क्या है युनिफॉर्म सिविल कोड

“महिला जन्मजात किसी धर्म व जाति की नहीं होती है। शादी के बाद धर्म, जाति सब बदल जाती है। स्त्री की एक ही जाति और धर्म है और वह है उसका स्त्री होना, फिर उस पर ही धर्म वर्ग और जाति की पाबंदी किसलिए? इसलिए धर्म-जाति से परे जा कर बराबर के कानूनी अधिकार उसे मिलने चाहिए और जो सिर्फ समान नागरिक संहिता से ही संभव है," मानना है सुप्रीम कोर्ट की वरिष्ठ अधिवक्ता कमलेश जैन का। उनके अनुसार, “हिंदू विवाह अधिनियम 1955 पारित होने से पहले हिंदू पुरुष भी एक पत्नी के रहते दूसरी, तीसरी शादी कर सकता था। पत्नी को तलाक पाने का अधिकार नहीं था। दत्तक कानूनों के तहत अविवाहित स्त्री बच्चा गोद नहीं ले सकती थी, लेकिन अब ऐसा नहीं है, इनमें सुधार आ चुका है। पहले उत्तराधिकार अधिनियम के तहत सिर्फ अविवाहित, परित्यक्ता और विधवा स्त्री को ही पिता के घर में रहने का अधिकार मिलता था, फिर लंबी जद्दोजहद के बाद संपत्ति में भी अधिकार मिला। इसी तरह मुस्लिम समाज में पहले दाल में नमक ज्यादा होने या बिना पूछे पड़ोस में चले जाने जैसी मामूली बातों पर तलाक हो जाया करते थे। अब अदालतों में ऐसे मामले आने पर सबसे विचारणीय प्रश्न होता है कि यदि पत्नी तलाक को मानने से मना कर रही है तो पति साबित करे कि उसने तलाक सही तरीके से दिया है या नहीं। समाज में स्त्रियों को एक नागरिक की तरह समान अधिकार मिलें, इसके लिए युनिफॉर्म सिविल कोड लागू हो, ताकि इससे महिलाओं के साथ धर्म-संप्रदाय के नाम पर होनेवाली ज्यादती पर रोक लगे। इसका लागू होना देश की हर महिला के लिए लाभकारी होगा।”
40 साल पहले का किस्सा
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