पादप वृद्धि एवं पैदावार बढ़ाने वाले अनेक सूक्ष्म जीव जैसे राइजोबियम, ब्रेडी राइजोबियम, एजोटोबैक्टर, फास्फेट विलेंयीकारक सूक्ष्म जीव प्रमुख रूप से किसानों द्वारा प्रयोग में लाए जा रहे हैं.
ये सूक्ष्म जीव अनेक प्रकार से फसल उत्पादन में सहायता करते हैं. सब से प्रमुख सूक्ष्म जीव राइजोबियम है जिस का प्रयोग सर्वाधिक रूप में प्रचलित है और इस को राइजोबियम कल्चर अथवा राइजोबियम निवेश द्रव्य के नाम से बाजार में बेचा किया जाता है.
इस में राइजोबियम जीवाणु दलहनी फसलों की जड़ों में सहजीवी के रूप में रह कर वायुमंडलीय नाइट्रोजन के स्थिरीकरण का काम करते हैं. कल्चर या जीवाणु खाद में उपस्थित राइजोबिया दलहनी फसलों की जड़ों में गांठें बनाते हैं, जो हलके गुलाबी रंग की होती हैं. इन्हीं गांठों के अंदर वायुमंडल की नाइट्रोजन स्थिरीकरण क्रिया द्वारा एकत्र होती रहती है, जो पौधों को उपलब्ध होती रहती है.
राइजोबियम की विशेष प्रजाति ही किसी विशेष दलहनी फसलों की जड़ों पर ग्रंथिकरण करने की क्षमता रखती है. लिहाजा, हर दलहनी फसल के लिए एक अलग प्रकार का राइजोबियम कल्चर होता है. दलहनी फसलों पर गांठें बोने की क्षमता के आधार पर राइजोबियम प्रजातियों को 7 मुख्य भागों में बांटा गया है.
सामान्यतः मिट्टी में प्राकृतिक रूप से ये बैक्टीरिया पाए जाते हैं, लेकिन इन राइजोबियम से अच्छे परिणाम नहीं मिलते हैं. यदि किसी खेत में कोई दलहनी फसल पहली बार बोई जा रही हो या काफी समय से नहीं बोई गई हो, तो इस स्थिति में बीज को राइजोबियम कल्चर से अवश्य उपचारित करें, तभी बोआई करें. कभीकभी यह निश्चित नहीं रहता कि मृदा में उपस्थित जीवाणु प्रभावशाली हैं या नहीं हैं, इसलिए इस अनिश्चितता को दूर करने के लिए एवं अधिक पैदावार लेने के लिए यह आवश्यक है कि बीज को प्रत्येक वर्ष राइजोबियम कल्चर से उपचारित करें. इस कल्चर के प्रयोग करने से अधिक पैदावार होने के साथसाथ फसल उत्तम गुणवत्ता वाली होती है.
कल्चर के प्रयोग से लगभग 50-100 किलोग्राम नाइट्रोजन प्रति हेक्टेयर जमीन में बढ़ाई जा सकती है एवं 10-30 प्रतिशत तक पैदावार बढ़ती है राइजोबियम जैव उर्वरक के प्रयोग से निम्नलिखित लाभ होते हैं :
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फार्म एन फूड की ओर से सम्मान पाने वाले किसानों को फ्रेम कराने लायक यादगार भेंट
उत्तर प्रदेश एवं उत्तराखंड
'चाइल्ड हैल्प फाउंडेशन' के अधिकारी हुए सम्मानित
भारत में काम करने वाली संस्था 'चाइल्ड हैल्प फाउंडेशन' से जुड़े 3 अधिकारियों संस्थापक ट्रस्टी सुनील वर्गीस, संस्थापक ट्रस्टी राजेंद्र पाठक और प्रोजैक्ट हैड सुनील पांडेय को गरीबी उन्मूलन और जीरो हंगर पर काम करने के लिए 'फार्म एन फूड कृषि सम्मान अवार्ड' से नवाजा गया.
लखनऊ में हुआ उत्तर प्रदेश व उत्तराखंड के किसानों का सम्मान
पहली बार बड़े लैवल पर 'फार्म एन फूड' पत्रिका द्वारा राज्य स्तरीय 'फार्म एन फूड कृषि सम्मान अवार्ड' का आयोजन लखनऊ की संगीत नाटक अकादमी में 17 अक्तूबर, 2024 को किया गया, जिस में उत्तर प्रदेश व उत्तराखंड से आए तकरीबन 200 किसान शामिल हुए और खेती में नवाचार और तकनीकी के जरीए बदलाव लाने वाले तकरीबन 40 किसानों को राज्य स्तरीय 'फार्म एन फूड कृषि सम्मान अवार्ड' से सम्मानित किया गया.
बढ़ेगी मूंगफली की पैदावार
महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय ने 7 अक्तूबर, 2024 को मूंगफली पर अनुसंधान एवं विकास को उत्कृष्टता प्रदान करने और किसानों की आय में वृद्धि करने हेतु मूंगफली अनुसंधान निदेशालय, जूनागढ़ के साथ समझौतापत्र पर हस्ताक्षर किए.
खाद्य तेल के दामों पर लगाम, एमआरपी से अधिक न हों दाम
केंद्र सरकार के खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण विभाग (डीएफपीडी) के सचिव ने मूल्य निर्धारण रणनीति पर चर्चा करने के लिए पिछले दिनों भारतीय सौल्वेंट ऐक्सट्रैक्शन एसोसिएशन (एसईएआई), भारतीय वनस्पति तेल उत्पादक संघ (आईवीपीए) और सोयाबीन तेल उत्पादक संघ (सोपा) के प्रतिनिधियों के साथ बैठक की अध्यक्षता की.
अक्तूबर महीने में खेती के खास काम
यह महीना खेतीबारी के नजरिए य से बहुत खास होता है इस महीने में जहां खरीफ की अधिकांश फसलों की कटाई और मड़ाई का काम जोरशोर से किया जाता है, वहीं रबी के सीजन में ली जाने वाली फसलों की रोपाई और बोआई का काम भी तेजी पर होता है.
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रकार की मंशा है कि खेती लाभ का धंधा बने. इस के लिए शासन द्वारा किसान हितैषी कई योजनाएं चलाई जा रही हैं.
खेती के साथ गौपालन : आत्मनिर्भर बने किसान निर्मल
आचार्य विद्यासागर गौ संवर्धन योजना का लाभ ले कर उन्नत नस्ल का गौपालन कर किसान एवं पशुपालक निर्मल कुमार पाटीदार एक समृद्ध पशुपालक बन गए हैं.
जीआई पंजीकरण से बढ़ाएं कृषि उत्पादों की अहमियत
हमारे देश में कृषि से जुड़ी फल, फूल और अनाज की ऐसी कई किस्में हैं, जो केवल क्षेत्र विशेष में ही उगाई जाती हैं. अगर इन किस्मों को उक्त क्षेत्र से इतर हट कर उगाने की कोशिश भी की गई, तो उन में वह क्वालिटी नहीं आ पाती है, जो उस क्षेत्र विशेष \" में उगाए जाने पर पाई जाती है.
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मौजूदा दौर में पराली प्रबंधन का मुद्दा खास है. पूरे देश में प्रदूषण का जहर लोगों की जिंदगी तबाह कर रहा है और प्रदूषण का दायरा बढ़ाने में पराली का सब से ज्यादा जिम्मा रहता है. सवाल उठता है कि पराली के जंजाल से कैसे निबटा जाए ?