इन सभी समस्याओं को ध्यान में रखते हुए धान की फसल में लगने वाले प्रमुख रोग, पहचान और उन के प्रबंधन के बारे में बता रहे हैं, जिस से कि किसान धान की फसल में उस रोग की समय से पहचान कर फसल का बचाव कर सकें.
झोंका रोग
यह धान की फसल का मुख्य रोग है, जो एक पाइरीकुलेरिया ओराइजी नामक फफूंद से फैलता है. इस रोग के लक्षण पौधे के सभी वायवीय भागों पर दिखाई देते हैं, परंतु सामान्य रूप से पत्तियां और पुष्प गुच्छ की ग्रीवा इस रोग से अधिक प्रभावित होती हैं. प्रारंभिक लक्षण में पौधे की निचली पत्तियों पर धब्बे दिखाई देते हैं. जब ये धब्बे बड़े हो जाते हैं, तो ये धब्बे नाव अथवा आंख की आकृति के जैसे हो जाते हैं. इन धब्बों के किनारे भूरे रंग के और मध्य वाला भाग राख जैसे रंग का होता है, बाद में धब्बे आपस में मिल कर पौधे के सभी हरे भागों को ढक लेते हैं, जिस से फसल जली हुई सी प्रतीत होती है.
रोग प्रबंधन
• रोगरोधी किस्मों का चयन करना चाहिए.
• बीज का चयन रोगरहित फसल से करना चाहिए.
• बीज को सदैव ट्राईकोडर्मा से उपचारित कर के ही बोना चाहिए.
• फसल की कटाई के बाद खेत में रोगी पौध अवशेषों एवं ठूठों इत्यादि को एकत्र कर के नष्ट कर देना चाहिए.
• फसल में रोग नियंत्रण के लिए बायोवेल का जैविक कवकनाशी बायोट्र्पर की 500 मिलीलिटर मात्रा का प्रति एकड़ में 120 से 150 लिटर पानी में घोल बना कर छिड़काव करना चाहिए.
जीवाणु झुलसा या झुलसा रोग
यह रोग जेंथोमोनास ओराईजी नामक जीवाणु से फैलता है. इसे साल 1908 में जापान में सब से पहले देखा गया था.
रोग की पहचान
पौधों की चोटी अवस्था से ले कर परिपक्व अवस्था तक यह रोग कभी भी लग सकता है. इस रोग में पत्तियां नोंक अथवा किनारों से शुरू हो कर मध्य भाग तक सूखने लगती हैं. सूखे हुए किनारे अनियमित एवं टेढ़ेमेढ़े या झुलसे हुए दिखाई देते हैं. इन सूखे हुए पीले पत्तों के साथसाथ चकत्ते भी दिखाई देते हैं. संक्रमण की उग्र अवस्था में पत्ती सूख जाती है. बालियों में दाने नहीं पड़ते हैं.
रोग प्रबंधन
• शुद्ध एवं स्वस्थ बीजों का ही प्रयोग करें.
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