जम्मू-कश्मीर में नदरू की खेती
Farm and Food|September Second 2023
जम्मू-कश्मीर की पारंपरिक खेती की बात की जाए, तो दाल, चावल और गेहूं की खेती वैसे ही होती है, जैसे भारत की दूसरी जगहों पर होती है. जब बात आती है जम्मूकश्मीर की, तो नदरू यानी कमल के तने की खेती वहां बहुत ही प्रचलित है. इस की सब्जी के बिना कश्मीरी पकवान अधूरा माना जाता हैं. इस की सब्जी ग्रेवी वाली भी बनती है और दही में भी इसे पकाया जाता है, जिसे यखनी कहते हैं.
सरोज बाला
जम्मू-कश्मीर में नदरू की खेती

इस की फसल को काटने के लिए किसान पूरा दिन झीलनदियों के किनारे भोर के समय बैठते हैं और एक छोर पर धातु की हुक के साथ लंबी लकड़ी के खंभे को हिलाते हुए पानी के अंदर गहरे से कमल के तने को बाहर निकालते हैं. जिस लोहे की धातु, जिस से कमल के तने निकालते हैं, उसे शम कहते हैं.

नदरू की खेती कश्मीर में रहने वाले किसानों की आजीविका है. इन के कई पूर्वज कमल की खेती करते आ रहे हैं. ये लोग आमतौर पर डल झील के आसपास रहते हैं.

कमल के तने की कटाई सितंबर और मार्च माह के बीच होती है. इस के बीज एक बार ही बोने पड़ते हैं, फिर कई सालों तक फसल अपनेआप तैयार हो जाती है.

देखने में नदरू का तना मुलायम होता है, जिस पर हलके से रुईदार नरम से बारीक रेशे होते हैं. इन तनों की लंबाई लगभग आधा मीटर तक होती है. ये पतले होते हैं. अगर छोटे हों तो ये हलके हरे रंग में होते हैं और थोड़े पक जाएं तो भूरे रंग के हो जाते हैं, जो पकने में थोड़ा समय लेते हैं. इन के काटने पर तने के अंदर बड़ेबड़े गोल से छेद होते हैं, जो देखने में बहुत में आकर्षक लगते हैं.

هذه القصة مأخوذة من طبعة September Second 2023 من Farm and Food.

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