भारत में इस की खेती अभी बहुत कम रकबे में की जाती है. जो किसान रोमनेस्को ब्रोकोली की खेती कर रहे हैं, वे इस विदेशी सब्जी को या तो पौलीहाउस में उगा रहे हैं या खुले में और्गेनिक तरीके से उगा कर बड़े होटलों और रैस्टोरैंट में सप्लाई दे रहे हैं.
अपने गुणों के चलते रोमनेस्को ब्रोकोली की देश में कीमत अभी करीब 2,000 रुपए प्रति किलोग्राम तक है. विशेषज्ञों का कहना है कि अगर देश में रोमनेस्को ब्रोकोली या गोभी की खेती का रकबा बढ़ता है, तब भी किसान इसे 300 से 400 रुपया प्रति किलोग्राम तक आसानी से बेच सकते हैं.
बांदा कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के सब्जी विज्ञान विभाग द्वारा विभाग के हैड डा. आरके सिंह की देखरेख में संरक्षित खेती के तहत इसे प्राकृतिक हवादार संरक्षित घर यानी नैचुरल वैंटीलेटर पौलीहाउस में सहफसली खेती के रूप में उगाया जा रहा है.
पोषक तत्त्वों की प्रचुरता
उन्होंने गोभी की इस किस्म के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि रोमनेस्को फूलगोभी की एक विदेशी किस्म है, जो अपनी सीप जैसी बनावट और पिरामिड और गुलदस्तानुमा डिजाइन जैसी आकृति के कारण काफी चर्चा में है.
इस अनोखी गोभी में विटामिंस, फोलेट, मैंगनीज, प्रोटीन, फास्फोरस, पोटैशियम, ओमेगा 3, फैटी एसिड और फाइबर जैसे पोषक तत्त्व मौजूद होते हैं, जो शरीर की इम्युनिटी बढ़ाने के साथ ही बढ़ते वजन को नियंत्रित करने और कैंसर जैसी बीमारियों की रोकथाम करते हैं. इस गोभी के सेवन से आंखें और दिल की बीमारियों के होने की संभावना कम होती है, क्योंकि विटामिन-ए, ओमेगा 3 की प्रचुर मात्रा पाई जाती है.
इस के अलावा इस में पाया जाने वाला सल्फर और नाइट्रोजनयुक्त यौगिक ग्लूकोसिनोलेट्स किडनी के लिए काफी फायदेमंद माना जाता है.
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कचरे के पहाड़ों पर खेती कमाई की तकनीक
वर्तमान में कचरा एक गंभीर वैश्विक समस्या बन कर उभरा है. भारत की बात करें, तो साल 2023 में पर्यावरण की स्थिति पर जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक, देश में प्रतिदिन तकरीबन डेढ़ करोड़ टन ठोस कचरा पैदा हो रहा है, जिस में से केवल एकतिहाई से भी कम कचरे का ठीक से निष्पादन हो पाता है. बचे कचरे को खुली जगहों पर ढेर लगाते हैं, जिसे कचरे की लैंडफिलिंग कहते हैं.
सर्दी की फसल शलजम
कम समय में तैयार होने वाली फसल शलजम है. इसे खास देखभाल की जरूरत नहीं होती है और किसान को क मुनाफा भी ज्यादा मिलता है. शलजम जड़ वाली हरी फसल है. इसे ठंडे मौसम में हरी सब्जी के रूप उगाया व इस्तेमाल किया जाता है. शलजम का बड़ा साइज होने पर इस का अचार भी बनाया जाता है.
राममूर्ति मिश्र : वकालत का पेशा छोड़ जैविक खेती से तरक्की करता किसान
हाल के सालों में किसानों ने अंधाधुंध रासायनिक खादों और कीटनाशकों का प्रयोग कर धरती का खूब दोहन किया है. जमीन से अत्यधिक उत्पादन लेने की होड़ के चलते खेतों की उत्पादन कूवत लगातार घट रही है, क्योंकि रसायनों के अंधाधुंध प्रयोग के चलते मिट्टी में कार्बांश की मात्र बेहद कम हो गई है, वहीं सेहत के नजरिए से भी रासायनिक उर्वरकों से पैदा किए जाने वाले अनाज और फलसब्जियां नुकसानदेह साबित हो रहे हैं.
करें पपीते की वैज्ञानिक खेती
पपीता एक महत्त्वपूर्ण फल है. हमारे देश में इस का उत्पादन पूरे साल किया जा सकता है. पपीते की खेती के लिए मुख्य रूप से जाना जाने वाला प्रदेश झारखंड है. यहां उचित जलवायु मिलने के कारण पपीते की अनेक किस्में तैयार की गई हैं.
दिसंबर महीने के जरुरी काम
आमतौर पर किसान नवंबर महीने में ही गेहूं की बोआई का काम खत्म कर देते हैं, मगर किसी वजह से गेहूं की बोआई न हो पाई हो, तो उसे दिसंबर महीने के दूसरे हफ्ते तक जरूर निबटा दें.
चने की खेती और उपज बढाने के तरीके
भारत में बड़े पैमाने पर चने की खेती होती है. चना दलहनी फसल है. यह फसल प्रोटीन, फाइबर और विभिन्न विटामिनों के साथसाथ मिनरलों का स्त्रोत होती है, जो इसे एक पौष्टिक आहार बनाती है.
रोटावेटर से जुताई
आजकल खेती में नएनए यंत्र आ रहे हैं. रोटावेटर ट्रैक्टर से चलने वाला जुताई का एक खास यंत्र है, जो दूसरे यंत्रों की 4-5 जुताई के बराबर अपनी एक ही जुताई से खेत को भुरभरा बना कर खेती योग्य बना देता है.
आलू खुदाई करने वाला खालसा पोटैटो डिगर
खालसा डिगर आवश्यक जनशक्ति और समय बचाता है. इस डिगर को जड़ वाली फसलों की खुदाई के लिए डिजाइन किया गया है. इस का गियर बौक्स में गुणवत्तापूर्ण पुरजों का इस्तेमाल किया गया है, जो लंबे समय तक साथ देने का वादा करते हैं.
कृषि एवं कौशल विकास से ही आत्मनिर्भर भारत बन सकेगा
बातचीत : गौतम टेंटवाल, कौशल विकास एवं रोजगार मंत्री, मध्य प्रदेश
गेहूं में खरपतवार नियंत्रण के प्रभावी उपाय
खरपतवार ऐसे पौधों को कहते हैं, जो बिना बोआई के ही खेतों में उग आते हैं और बोई गई फसलों को कई तरह से नुकसान पहुंचाते हैं. मुख्यतः खरपतवार फसलीय पौधों से पोषक तत्त्व, नमी, स्थान यानी जगह और रोशनी के लिए होड़ करते हैं. इस से फसल के उत्पादन में कमी होती है.