आमतौर पर कीटनाशक व फफूंदनाशक दवाओं का फसल पर कोई बुरा असर नहीं पड़ता. खरपतवारनाशी की कम व ज्यादा मात्रा से खरपतवार नियंत्रण के लिए मुसीबत पैदा हो जाती है.
वैज्ञानिक रूप से भी यह साबित हो चुका है कि खरपतवार की रोकथाम में 50 फीसदी ही केवल दवा का सहयोग होता है और बाकी 50 फीसदी स्प्रे संबंधित प्रणाली का होता है, इसीलिए स्प्रे संबंधित प्रबंधन की जानकारी खरपतवार की रोकथाम के लिए बहुत जरूरी है. उचित दवा के चयन के बाद 3 बातें जरूर ध्यान रखनी चाहिए :
• दवा की उचित व एकसमान मात्रा पौधों के ऊपर गिरनी चाहिए.
• दवा पौधों के ऊपर ठहरनी चाहिए.
• दवा की पूरी मात्रा पौधों के अंदर तक जानी चाहिए.
स्प्रे करते समय इन बातों का ध्यान रखना बहुत जरूरी है, ताकि फसल को बिना किसी नुकसान के खरपतवार नियंत्रण हो सके.
खेत में नमी
खरपतवार उगने से पहले और उगने के बाद स्प्रे करने वाले (खरपतवारनाशी) के लिए खेत में नमी का होना बहुत जरूरी है. खरपतवार उगने से पहले स्प्रे करने वाले खरपतवारनाशियों की सफलता केवल खेत में नमी पर निर्भर करती है जैसे एट्राजीन, पैंडीमिथेलीन, मैट्रीब्यूजीन या अन्य खरपतवारनाशी, जो भी खरपतवार आने से पहले स्प्रे किए जाते हैं, उन के लिए नमी बहुत जरूरी है.
घास उगने के बाद प्रयोग में लाए गए खरपतवारनाशियों के लिए भी खेत में नमी महत्त्वपूर्ण है. नमी की स्थिति में खरपतवारों की बढ़वार काफी तेजी से होती है और दवा पूरी तरह से पौधे के अंदर पहुंच कर अच्छा नियंत्रण करती है.
खरपतवार की अवस्था
शाकनाशी यानी खरपतवारनाशी हमेशा वैज्ञानिकों द्वारा बताई गई समयसीमा के भीतर ही स्प्रे करना चाहिए या खरपतवार की बढ़वार की स्थिति को ध्यान में रख कर ही स्प्रे करना चाहिए जैसे गेहूं में खरपतवार उगने के बाद खरपतवारनाशियों का स्प्रे बिजाई के 30-35 दिन के अंदर करना चाहिए.
गन्ने में मोथा घास के नियंत्रण के लिए सिफारिश की गई दवा सैम्परा ( हैलोसल्फ्यूरान मिथाइल) का स्प्रे वसंतकालीन व पछेती बिजाई के लिए पहले पानी के बाद या मोथा घास की 3-5 पत्ती अवस्था में ही करना चाहिए. इस के बाद स्प्रे करने से पूरा नियंत्रण नहीं होगा.
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कचरे के पहाड़ों पर खेती कमाई की तकनीक
वर्तमान में कचरा एक गंभीर वैश्विक समस्या बन कर उभरा है. भारत की बात करें, तो साल 2023 में पर्यावरण की स्थिति पर जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक, देश में प्रतिदिन तकरीबन डेढ़ करोड़ टन ठोस कचरा पैदा हो रहा है, जिस में से केवल एकतिहाई से भी कम कचरे का ठीक से निष्पादन हो पाता है. बचे कचरे को खुली जगहों पर ढेर लगाते हैं, जिसे कचरे की लैंडफिलिंग कहते हैं.
सर्दी की फसल शलजम
कम समय में तैयार होने वाली फसल शलजम है. इसे खास देखभाल की जरूरत नहीं होती है और किसान को क मुनाफा भी ज्यादा मिलता है. शलजम जड़ वाली हरी फसल है. इसे ठंडे मौसम में हरी सब्जी के रूप उगाया व इस्तेमाल किया जाता है. शलजम का बड़ा साइज होने पर इस का अचार भी बनाया जाता है.
राममूर्ति मिश्र : वकालत का पेशा छोड़ जैविक खेती से तरक्की करता किसान
हाल के सालों में किसानों ने अंधाधुंध रासायनिक खादों और कीटनाशकों का प्रयोग कर धरती का खूब दोहन किया है. जमीन से अत्यधिक उत्पादन लेने की होड़ के चलते खेतों की उत्पादन कूवत लगातार घट रही है, क्योंकि रसायनों के अंधाधुंध प्रयोग के चलते मिट्टी में कार्बांश की मात्र बेहद कम हो गई है, वहीं सेहत के नजरिए से भी रासायनिक उर्वरकों से पैदा किए जाने वाले अनाज और फलसब्जियां नुकसानदेह साबित हो रहे हैं.
करें पपीते की वैज्ञानिक खेती
पपीता एक महत्त्वपूर्ण फल है. हमारे देश में इस का उत्पादन पूरे साल किया जा सकता है. पपीते की खेती के लिए मुख्य रूप से जाना जाने वाला प्रदेश झारखंड है. यहां उचित जलवायु मिलने के कारण पपीते की अनेक किस्में तैयार की गई हैं.
दिसंबर महीने के जरुरी काम
आमतौर पर किसान नवंबर महीने में ही गेहूं की बोआई का काम खत्म कर देते हैं, मगर किसी वजह से गेहूं की बोआई न हो पाई हो, तो उसे दिसंबर महीने के दूसरे हफ्ते तक जरूर निबटा दें.
चने की खेती और उपज बढाने के तरीके
भारत में बड़े पैमाने पर चने की खेती होती है. चना दलहनी फसल है. यह फसल प्रोटीन, फाइबर और विभिन्न विटामिनों के साथसाथ मिनरलों का स्त्रोत होती है, जो इसे एक पौष्टिक आहार बनाती है.
रोटावेटर से जुताई
आजकल खेती में नएनए यंत्र आ रहे हैं. रोटावेटर ट्रैक्टर से चलने वाला जुताई का एक खास यंत्र है, जो दूसरे यंत्रों की 4-5 जुताई के बराबर अपनी एक ही जुताई से खेत को भुरभरा बना कर खेती योग्य बना देता है.
आलू खुदाई करने वाला खालसा पोटैटो डिगर
खालसा डिगर आवश्यक जनशक्ति और समय बचाता है. इस डिगर को जड़ वाली फसलों की खुदाई के लिए डिजाइन किया गया है. इस का गियर बौक्स में गुणवत्तापूर्ण पुरजों का इस्तेमाल किया गया है, जो लंबे समय तक साथ देने का वादा करते हैं.
कृषि एवं कौशल विकास से ही आत्मनिर्भर भारत बन सकेगा
बातचीत : गौतम टेंटवाल, कौशल विकास एवं रोजगार मंत्री, मध्य प्रदेश
गेहूं में खरपतवार नियंत्रण के प्रभावी उपाय
खरपतवार ऐसे पौधों को कहते हैं, जो बिना बोआई के ही खेतों में उग आते हैं और बोई गई फसलों को कई तरह से नुकसान पहुंचाते हैं. मुख्यतः खरपतवार फसलीय पौधों से पोषक तत्त्व, नमी, स्थान यानी जगह और रोशनी के लिए होड़ करते हैं. इस से फसल के उत्पादन में कमी होती है.