
राम को भारत की आत्मा माना जाता है। कण-कण में राम बसे हैं जनमानस में ये भाव बसे हैं। ऐसे ही अनेक तथ्य हमें मिलते हैं सारी दुनिया में। भारत में ही नहीं अपितु विश्व के विभिन्न भूखंड में रामकथा सम्मानित रही है। मध्यकाल में आक्रांताओं ने राम और हनुमान से जुड़े मंदिरों और स्मारकों का अस्तित्व ढूंढ-ढूंढकर मिटाया था। इसका सबसे बड़ा कारण यह नहीं था कि तत्कालीन आक्रांताओं में ज्ञान की कमी थी बल्कि आम जनमानस में रचे-बसे राम के शौर्य, वीरता और ईश्वरी तत्व से आक्रांत भयभीत थे। उन्हें यह लगता था कि कहीं राम पुनः जीवित हो कर उनके मंसूबों पर पानी न फेर दें। एक कारण यह भी हो सकता है कि रामकथा की महत्ता बताने वाली पीढ़ी समाप्त हो गई और तत्कालीन युवाओं में धार्मिक सांस्कृतिक और अपनी धरोहर को संजोकर रखने की प्रवृत्ति समाप्त प्रायः हो गई थी। उन्हें अपने अस्तित्व को बचाए रखने का प्रश्न मुख्य हो गया। संभवत: यह संक्रांति काल था और शिक्षक लुप्तप्राय हो गए थे। मार्गदर्शक कोई नहीं था। इसके वाबजूद रामकथा का अस्तित्व कोई समाप्त नहीं कर पाया।
लोकोक्तिया
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क्यों पड़ती हैं चेहरे पर झुर्रियां
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3 अप्रैल से उत्तराखंड में चार धाम यात्रा शुरू होने जा रही है, जिसके पंजीकरण की प्रक्रिया 1 मार्च से शुरू हो चुकी है।