तेज़ी से आगे बढ़ती हाइपरकनेक्टेड दुनिया जहां तुरंत काम करने को सराहा जाता है में क्या ज़रूरी है और क्या नहीं को 'अर्जेंसी कल्चर' जैसी हड़बड़ी की दौड़ ने धुंधला कर दिया है। समय से लड़ती एक लंबी और थकानभरी दौड़ से अधिक ये कुछ नहीं।
आसान करने चले थे, मुश्किल होते गए
आज तकनीकी विकास ने बहुत-सी चीज़ों को आसान तो किया है पर फिर भी हमारा आराम भी छीन लिया है। स्मार्टफोन से कभी भी, कहीं भी होता संवाद, वेब ब्राउज़र पर चुटकियों में मिलते सवालों के जवाब, चौबीसों घंटे की उपलब्धता ने इंसान व्यक्तिगत जीवन और काम के बीच की दूरी को मिटा दिया है। अमेरिकन साइकोलॉजिकल एसोसिएशन द्वारा 2020 में एक सर्वे में पता चला है कि लगभग 50 फ़ीसदी कर्मचारियों को उनके नियमित काम के घंटों के बाद भी काम से संचार का जवाब देना पड़ता है, जिसके चलते वे काम से पूरी तरह बाहर आ ही नहीं पाते। वहीं एसोसिएशन की 2023 की अन्य रिपोर्ट में एक-चौथाई वयस्क तनाव के उच्च स्तर को महसूस कर रहे हैं, जो 2019 से 19 प्रतिशत बढ़ा है।
अरे भई! थोड़ा अर्जेंट है क्या करें
जैसा कि नाम से ही ज़ाहिर है अर्जेंसी यानी अत्यावश्यकता, कोई भी काम जो सबसे पहले किया जाना चाहिए। हैरानी की बात तो यह है कि आज हमारा हर काम इस शब्द के इर्द-गिर्द घूमता नज़र आता है। आमतौर पर दो भागों में बंटे काम या तो 'अत्यावश्यक' होते हैं या फिर 'महत्वपूर्ण'। अत्यावश्यक काम यानी वह जिसका तुरंत किया जाना ज़रूरी है और महत्वपूर्ण वे जिन्हें थोड़ा समय निकालकर किया जा सकता है। लेकिन अब तो एक नए सामाजिक मानदंड के रूप में हर काम को अर्जेंट बना दिया गया है, हम निरंतर व्यस्तता, त्वरित प्रतिक्रिया, तत्काल परिणामों और तत्परता के आधार पर काम की महत्ता आंकने लगे हैं। हमारी नज़र में तेज़ यानी बेहतर है और धीमा यानी अकुशल या आलस्य से भरा । वर्तमान में कई कार्यस्थलों में लंबे समय तक बिना रुके काम करने को समर्पण और सफलता के संकेतक के रूप में देखा जाता है।
टाइप ए और टाइप बी पैटर्न
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सबके शंकर...
उन्हें भारत में राजनीतिक कार्टूनिंग का जनक माना जाता है। उनकी धारदार रेखाओं से देसी-विदेशी कोई भी राजनेता नहीं बचा। नेहरू से लेकर अन्य कई बड़े नेता उनके प्रिय मित्रों में थे, लेकिन राजनीति में जाने के बजाय उन्होंने दुनियाभर के बच्चों के लिए कुछ विशेष करने का जुनून चुना। उम्र के जिस पड़ाव पर उन्होंने बच्चों के लिए चित्रकला, लेखन, नृत्य, संगीत की अंतरराष्ट्रीय स्पर्धाएं, चिल्ड्रन बुक ट्रस्ट, इंटरनेशनल डॉल म्यूज़ियम जैसी अनेक परियोजनाओं को अकेले अपने दम पर पूरा किया, तब अक्सर लोग नाती-पोतों के साथ आराम से दिन गुज़ारना चाहते हैं। एक व्यक्ति नहीं संस्था के रूप में वृद्धों और युवाओं में समान रूप से लोकप्रिय और दुनियाभर के बच्चों के लिए 'पाइड पाइपर' कहलाने वाले शंकर ही इस बार ज़िंदगी की किताब के हमारे हीरो हैं....
आम वाला ख़ास शहर
समुद्र की अनंत गहराइयों से लेकर नारियल के पेड़ों और आम के बाग़ों तक, रत्नागिरी एक ऐसी भूमि है जो अपने विविधतापूर्ण सौंदर्य में मानो एक पूरा विश्व समेटे हुए है। महाराष्ट्र के पश्चिमी तट पर बसा यह शहर प्राकृतिक सुंदरता, ऐतिहासिक गौरव और सांस्कृतिक समृद्धि का एक अद्भुत संगम है।
सेब क्या है?
इसका सीधा जवाब होगा कि सेब एक फल है। लेकिन जवाब इतना सीधा-सरल होता तो ऐसा पूछा ही क्यों जाता?
एक तीर ने बदल दी हिंदुस्तान की तक़दीर
राहुल सांकृत्यायन ने जिस अकबर के बारे में कहा कि अशोक और गांधी के बीच में उनकी जोड़ी का एक ही पुरुष हमारे देश में पैदा हुआ....जिस अकबर ने बहुरंगी महादेश में समन्वय को अहम अस्त्र बनाकर आधी सदी तक राज किया....उसके गद्दीनशीन होने के दो प्रसंग बताते हैं कि सद्भावना और साहस के साथ संयोग ने भी उसकी क़िस्मत लिखी, और हिंदुस्तान की भी....
नए ज़माने का जरूरी व्रत
व्रत-उपवास न सिर्फ़ संयम सिखाते हैं, बल्कि शारीरिक और मानसिक लाभ भी प्रदान करते हैं। नए ज़माने की डिजिटल फास्टिंग में भी ये सारे लाभ समाए हैं। अब बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक, सभी के लिए स्क्रीन उपवास अनिवार्य हो गया है।
पापा हीरो बेटी परी
हर बेटी के लिए पिता उसका पहला हीरो होता है और हर पिता के लिए उसकी बेटी परी। बाप-बेटी के रिश्ते में प्यार-दुलार, संरक्षण, मार्गदर्शन के साथ प्रतिबंध, सख़्ती और एक डर का भाव भी बना रहता है। ज़िद पूरी होती है तो अनुशासन की अपेक्षा भी रहती है। बदलते दौर में इस रिश्ते के ताने-बाने भी बदल रहे हैं, पर नहीं बदली हैं तो पिता-पुत्री की एक-दूसरे के लिए भावनाएं।
आज सबसे अच्छा दिन है
नववर्ष और उससे संबंधित संकल्प, दोनों ही पश्चिम की परंपराएं हैं। अक्सर ये संकल्प रस्मी तौर पर लिए जाते हैं और जल्द ही भुला दिए जाते हैं। ऐसे में भारतीय परंपरा संकल्पों को साकार करने में सहायक होगी।
सूर्य के नाना रूप सिखाते हैं
उदय से अस्त तक सूर्य अपने बदलते रूपों से सिखाता है कि जीवन भी परिवर्तनशील है, प्रतिपल नवीन है। संसार में सम्मान उसी को मिलता है जो इस निरंतर नवीनता को सहज स्वीकारते हुए सक्रिय रहता है। दुनिया को सूर्य की भांति ही ऐसे व्यक्ति के आगमन की भी प्रतीक्षा होती है।
एक नया मनुष्य
कैलेंडर बदल गया, एक नई तारीख़ आ गई। लेकिन मनुष्य तो वही पुराना रहा। पुरानेपन के साथ वह नए का आनंद कहां ले पाएगा, उसे समझ तक नहीं पाएगा। अगर मानव वास्तव में नया हो जाए तो उसके लिए हर दिन नववर्ष की तरह होगा, वह जीवन के हर पल में प्रसन्न रहेगा। लेकिन कैसे...?
नित नूतन जीवन
नया साल, नई उम्मीदें, नई शुरुआत। नवीनता सिर्फ़ एक शब्द नहीं, बल्कि जीवन का सार है और सूत्र भी। हमारा शरीर हर पल बदलता है, हर क्षण लाखों कोशिकाएं जन्म लेती हैं और मरती हैं। हर सांस हमें एक नए अनुभव से जोड़ती है। जैसे नदी का पानी कभी स्थिर नहीं रहता, वैसे ही हमारी सोच, वातावरण और परिस्थितियां भी बदलती रहती हैं। इस नववर्ष पर आइए, नएपन को गले लगाएं।