
जैसे-जैसे सर्दी का मौसम आता है, भारत में ऊर्जा खपत के पैटर्न में सहज रूप से बदलाव देखने को मिलता है। सामान्यत: सर्दियों में घरों और व्यवसायों में गर्मियों के मुक़ाबले बिजली का उपयोग कम होता है, क्योंकि एयरकंडीशनर और पंखे-कूलर की आवश्यकता घट जाती है। यह मौसमी कमी हमें बिजली बिल कम करने, पैसे बचाने, कार्बन उत्सर्जन को घटाने और पर्यावरण में सकारात्मक योगदान करने का अवसर देती है। हालांकि जाड़े का मौसम कुछ क्षेत्रों में ऊर्जा की मांग को बढ़ा भी देता है। उदाहरण के लिए, कूलिंग की आवश्यकता घट जाती है, परंतु गर्म पानी से स्नान करने की आवश्यकता बढ़ जाती है। बावजूद इसके कुछ व्यावहारिक बदलावों के साथ, हम घरों में इस मौसम की ऊर्जा बचत संभावनाओं को अधिकतम कर सकते हैं और एक बड़ा सकारात्मक असर डाल सकते हैं।
क्यों ज़रूरी है बचत?
भारत में अभी भी बिजली उत्पादन मुख्य रूप से कोयले पर निर्भर है, देश की 70% से अधिक बिजली कोयला-आधारित संयंत्रों से आती है। हर एक यूनिट बिजली के लिए जो कोयले से बनाई जाती है, लगभग एक किलो कार्बन डाइऑक्साइड गैस वायुमंडल में उत्सर्जित होती है। जब यह कार्बन डाइऑक्साइड वायुमंडल में छोड़ी जाती है तो यह औसतन 300 सालों तक वहां रहती है। यह तथ्य ग्लोबल वार्मिंग और ग्रीनहाउस प्रभाव को तीव्र करता है। इसका मतलब है कि जो भी बिजली हम आज उपयोग करते हैं, उसका जलवायु पर प्रभाव सदियों तक रहेगा।
कल्पना कीजिए: एक दिन के लिए फ्रिज का उपयोग करना, एक बार गर्म पानी से स्नान करना या एक घंटे तक एयर कंडीशनर चलाना - ये सभी अस्थायी आराम प्रदान कर सकते हैं, लेकिन ये हमारे बच्चों और पोते-पोतियों को विरासत में जलवायु संकट भी देंगे। आज के साधारण आराम लंबे समय तक पर्यावरण के नुक़सान का कारण बनते हैं। इसके चलते ऊर्जा बचाने के लिए गंभीरता से सोचना और उसके उपायों को तत्काल अमल में लाना हर में व्यक्ति की ज़िम्मेदारी बन जाती है।
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वन के दम पर हैं हम
भौतिक विकास के रथ पर सवार मानव स्वयं को भले ही सर्वशक्तिमान और सर्वसमर्थ समझ ले, किंतु उसका जीवन विभिन्न जीव-जंतुओं से लेकर मौसम और जल जैसे प्रकृति के आधारभूत तत्वों पर आश्रित है।

दिखता नहीं, वह भी बह जाता है!
जब भी पानी की बर्बादी की बात होती है तो अक्सर लोग नल से बहते पानी, प्रदूषित होते जलस्रोत या भूजल के अंधाधुंध दोहन की ओर इशारा करते हैं।

वन का हर घर मंदिर
जनजाति समाज घर की ड्योढ़ी को भी देवी स्वरूप मानता है। चौखट और डांडे में देवता देखता है। यहां तक कि घर के बाहर प्रांगण में लगी किवाडी पर भी देवता का वास माना जाता है।

ताक-ताक की बात है
पहले घरों में ताक होते थे जहां ज़रूरी वस्तुएं रखी जाती थीं। अब सपाट दीवारें हैं और हम ताक में रहने लगे हैं।

किताबें पढ़ने वाली हीरोइन.
बॉलीवुड में उनका प्रवेश मानो फूलों की राह पर चलकर हुआ। उनकी शुरुआती दो फिल्मों- कहो ना प्यार है और ग़दर-ने इतिहास रच दिया। बाद में भी कई अच्छी फिल्मों से उनका नाम जुड़ा।

फ़ायदे के रस से भरे नींबू
रायबरेली के 'लेमन मैन' आनंद मिश्रा को कौन नहीं जानता! अच्छी आय की नौकरी को छोड़कर वे पैतृक गांव में लौटे और दो एकड़ कृषि भूमि पर नींबू की खेती करके राष्ट्रीय पहचान बनाई। प्रस्तुत है, उनकी कहानी, उन्हीं की जुबानी।

जहां देखो वहां आसन
योगासन शरीर को तोड़ना-मरोड़ना नहीं है, बल्कि ये प्रकृति की सहज गतियां और स्थितियां हैं। आस-पास नज़रें दौड़ाकर देखने से पता लगेगा कि सभी आसन जीव-जंतुओं और वनस्पतियों से ही प्रेरित हैं, चाहे वो जंगल का राजा हो, फूलों पर मंडराने वाली तितली या ताड़ का पेड़।

बांटने में ही आनंद है
दुनिया में लोग सामान्यत: लेने खड़े हैं, कुछ तो छीनने भी । दान तो देने का भाव है, वह कैसे आएगा! इसलिए दान के नाम पर सौदेबाज़ी होती है, फ़ायदा ढूंढा जाता है। इसके ठीक उलट, वास्तविक दान होता है स्वांतः सुखाय- जिसमें देने वाले की आत्मा प्रसन्न होती है।
बहानेबाज़ी भी एक कला है!
कई बार कितनी भी कोशिश कर लो, ऑफिस पहुंचने में देर हो ही जाती है, ऐसे में कुछ लोग मासूम-सी शक्ल बना लेते हैं तो कुछ लोग आत्मविश्वास के साथ कुछ बहाना पेश करते हैं। और बहाने भी ऐसे कि हंसी छूट जाए। बात इन्हीं बहानेबाज़ लोगों की हो रही है।

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