
संसार के अनेक रहस्यों में से कुछ कभी न समझ आने वाले होते हैं। संसारभर में फैली प्रकृति की लीला के कुछ अंश अपनी आंखों से देखते हैं और चकित भी होते हैं कि ऐसे रूप, रस, गंध से जिसे ईश्वर ने रचा हो वह भला उपेक्षित क्यों हो! चंपा का फूल और सप्तपर्णी ऐसे ही रहस्य की तरह हर बार आंखों के सामने आते हैं। झरता तो हरसिंगार भी है, लेकिन उसकी महत्ता अद्भुत है। उसमें सुगंध तीव्र नहीं है, किंतु जो शुभता, जो सौंदर्य, जो पवित्रता है वह कहीं और नहीं। वहीं, झरते हुए सप्तपर्णी में बहुत तीव्र मादक गंध है, उसके झरने में भी अपार सौंदर्य है, किंतु उसका झरना जैसे विलाप लगता है। चंपा भी सुगंधित है, किंतु कैसा शाप - न भ्रमर पास आता है, न शिव को अर्पित होता है। होती हैं प्रकृति में कुछ वस्तुएं बहुत सुंदर, कल्याणकारी, निरापद; किंतु उतनी ही शापित भी। अहल्या शापित हैं, कृष्ण शापित हैं, शालिग्राम भी, ब्रह्मा भी, इंद्र भी, चंद्र भी, दशरथ भी, नारद भी, शिव भी, नंदी भी, पार्वती भी, गणेश भी, गंगा भी, गायत्री भी, सुदामा भी, कर्ण भी, काम भी भी और स्वयं नारायण-लक्ष्मी भी, कौन बचा शाप से?
तो क्या कल्याणकारी जीवन का आवश्यक आभूषण है शाप? कर्मयोगियों के जीवन का शृंगार हो जाते हैं क्या शाप?
शापित हो या महान हो तुम!
शाप ही सौंदर्य बन जाए, या सौंदर्य ही शाप का कारण हो जाए, कौन जाने! सौंदर्यवान को ही तो नज़र लगती है, समर्थ को देखकर ही तो ईर्ष्या होती है, चांद को ही तो ग्रहण लगता है। जो अनचीन्हे हैं, सौंदर्यहीन हैं, गुणहीन हैं उन्हें क्या दृष्टि लगेगी और कोई क्यों उन्हें शापित करेगा। शापित भी तो महान ही होते हैं, महान बड़े कार्यों को करने वाले, सामर्थ्यवान गुणवान को ही शाप मिलते हैं। सुना है क्या कभी किसी दरिद्र को शाप दिया हो किसी ने, किसी वज्रमूर्ख पर पड़े हों शाप के छींटे!
शाप तो गुणवानों की शोभा बना, शक्तिसंपन्न, सौंदर्यवान, गुणवान, अध्यात्म, वैराग्य, चेतना के उच्चतम सोपानों पर स्थित आत्माएं ही अधिक शापग्रस्त हुईं। विश्व कल्याण के लिए नियमों में व्यतिक्रम का दंड भोगने को प्रस्तुत भी हुईं सहर्ष।
هذه القصة مأخوذة من طبعة December 2024 من Aha Zindagi.
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वन के दम पर हैं हम
भौतिक विकास के रथ पर सवार मानव स्वयं को भले ही सर्वशक्तिमान और सर्वसमर्थ समझ ले, किंतु उसका जीवन विभिन्न जीव-जंतुओं से लेकर मौसम और जल जैसे प्रकृति के आधारभूत तत्वों पर आश्रित है।

दिखता नहीं, वह भी बह जाता है!
जब भी पानी की बर्बादी की बात होती है तो अक्सर लोग नल से बहते पानी, प्रदूषित होते जलस्रोत या भूजल के अंधाधुंध दोहन की ओर इशारा करते हैं।

वन का हर घर मंदिर
जनजाति समाज घर की ड्योढ़ी को भी देवी स्वरूप मानता है। चौखट और डांडे में देवता देखता है। यहां तक कि घर के बाहर प्रांगण में लगी किवाडी पर भी देवता का वास माना जाता है।

ताक-ताक की बात है
पहले घरों में ताक होते थे जहां ज़रूरी वस्तुएं रखी जाती थीं। अब सपाट दीवारें हैं और हम ताक में रहने लगे हैं।

किताबें पढ़ने वाली हीरोइन.
बॉलीवुड में उनका प्रवेश मानो फूलों की राह पर चलकर हुआ। उनकी शुरुआती दो फिल्मों- कहो ना प्यार है और ग़दर-ने इतिहास रच दिया। बाद में भी कई अच्छी फिल्मों से उनका नाम जुड़ा।

फ़ायदे के रस से भरे नींबू
रायबरेली के 'लेमन मैन' आनंद मिश्रा को कौन नहीं जानता! अच्छी आय की नौकरी को छोड़कर वे पैतृक गांव में लौटे और दो एकड़ कृषि भूमि पर नींबू की खेती करके राष्ट्रीय पहचान बनाई। प्रस्तुत है, उनकी कहानी, उन्हीं की जुबानी।

जहां देखो वहां आसन
योगासन शरीर को तोड़ना-मरोड़ना नहीं है, बल्कि ये प्रकृति की सहज गतियां और स्थितियां हैं। आस-पास नज़रें दौड़ाकर देखने से पता लगेगा कि सभी आसन जीव-जंतुओं और वनस्पतियों से ही प्रेरित हैं, चाहे वो जंगल का राजा हो, फूलों पर मंडराने वाली तितली या ताड़ का पेड़।

बांटने में ही आनंद है
दुनिया में लोग सामान्यत: लेने खड़े हैं, कुछ तो छीनने भी । दान तो देने का भाव है, वह कैसे आएगा! इसलिए दान के नाम पर सौदेबाज़ी होती है, फ़ायदा ढूंढा जाता है। इसके ठीक उलट, वास्तविक दान होता है स्वांतः सुखाय- जिसमें देने वाले की आत्मा प्रसन्न होती है।
बहानेबाज़ी भी एक कला है!
कई बार कितनी भी कोशिश कर लो, ऑफिस पहुंचने में देर हो ही जाती है, ऐसे में कुछ लोग मासूम-सी शक्ल बना लेते हैं तो कुछ लोग आत्मविश्वास के साथ कुछ बहाना पेश करते हैं। और बहाने भी ऐसे कि हंसी छूट जाए। बात इन्हीं बहानेबाज़ लोगों की हो रही है।

बहानेबाज़ी भी एक कला है!
कई बार कितनी भी कोशिश कर लो, ऑफिस पहुंचने में देर हो ही जाती है, ऐसे में कुछ लोग मासूम-सी शक्ल बना लेते हैं तो कुछ लोग आत्मविश्वास के साथ कुछ बहाना पेश करते हैं। और बहाने भी ऐसे कि हंसी छूट जाए। बात इन्हीं बहानेबाज़ लोगों की हो रही है।