जाति न पूछो प्यार में
Mukta|February 2023
प्यार कभी जाति और धर्म का भेद नहीं देखता पर हमारे समाज पर रूढ़िवादिता की सोच इतनी हावी है कि दो प्यार करने वालों को जाति व धर्म के चलते अलग होना पड़ जाता है. इस सोच को बदलने का काम युवा पीढ़ी को ही करना है.
शैलेंद्र सिंह
जाति न पूछो प्यार में

वैलेंटाइन डे पर प्यार करने से पहले जाति और धर्म को बीच में नहीं लाना चाहिए. अगर युवा अपनी सोच बदलेंगे तो समाज में बदलाव होगा. प्यार और शादी को ले कर ज्यादातर युवाओं की यह सोच होती है कि प्यार जहां हो, शादी भी वहीं हो. कुछ युवा प्यार और शादी के मुद्दे को अलग रखना चाहते हैं. उन का कहना है कि शादी पेरैंट्स की मरजी से ही होनी चाहिए. भारत में प्रेम और उस को ले कर चल रहे प्रयोग बहुत अलगअलग होते हैं. भारतीय फिल्में देखने से ऐसा लगता है कि युवा भारतीयों के लिए रोमांस और प्रेम के सिवा कोई दूसरा काम नहीं है. लेकिन एक बड़ा वर्ग ऐसा है जो अभी भी 'अरेंज मैरिज' को अपनी पहली पसंद मानता है.

लव मैरिज के प्रति बदल रहा नजरिया

2018 के सर्वे के मुताबिक, एक लाख 60 हजार से अधिक भारतीय परिवारों में 93 प्रतिशत शादीशुदा लोगों ने कहा कि उन की शादी अरेंज मैरिज है. महज 3 प्रतिशत लोगों ने अपने विवाह को प्रेम विवाह बताया जबकि केवल 2 प्रतिशत लोगों ने अपनी शादी को लव कम अरेंज बताया. इस से जाहिर है कि भारत में परिवार के लोग शादियां तय करते हैं. समय के साथ इस स्थिति में कोई बदलाव नहीं आया है.

भारत में अरेंज शादियों की विशेषता अपनी जाति में ही शादी करना है. 2014 के एक सर्वे में शहरी भारत के 70 हजार लोगों में 10 प्रतिशत से भी कम लोगों ने माना कि उन के अपने परिवार में जाति से अलग से कोई शादी हुई है. अंतर्धामिक शादियां तो और भी कम होती हैं. शहरी भारत में महज 5 प्रतिशत लोगों ने माना है कि उन के परिवार में किसी ने धर्म से बाहर जा कर शादी की है. भारत में युवा अमूमन जाति के बंधन को तोड़ कर शादी करने की इच्छा जताते हैं लेकिन वास्तविकता में काफी अंतर है.

हावी है रूढ़िवादी सोच

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