कोरोना के कारण देश में शिक्षा लगभग बंद हो चुकी थी. स्कूल, कालेज, इंस्टिट्यूट्स हर जगह ताला लगा हुआ था. ऐसे में शिक्षा को जारी रखने के लिए औनलाइन एजुकेशन एक होप की तरह सामने आई. इस से पूरे तौर पर तो नहीं लेकिन कुछ हद तक स्कूल और कालेजों की शिक्षा जारी रही.
गूगल मीट, यूट्यूब, स्काइप और जूम के माध्यम से क्लासें ली जा रही थीं व्हाट्सऐप ग्रुप, टैलिग्राम चैनल के माध्यम से शिक्षा सामग्री शेयर की जा रही थी, जिस का असर यह हुआ कि लोग पारंपरिक फेसटूफेस शिक्षा से औनलाइन शिक्षा की तरफ बढ़ने लगे. कोविड से अलग इस की कुछ खास वजह भी थी.
इंटरनैट की बढ़ती पहुंच के साथसाथ औनलाइन शिक्षा देश के हर कोने में पहुंच रही थी, दूरदराज के इलाकों के विद्यार्थियों का दिल्ली, कोटा के संस्थानों तक आना मुश्किल था, उस वक्त वे घर से ही अपनी पढ़ाई जारी रखे हुए थे.
फायदा या नुकसान का सौदा
औनलाइन एजुकेशन के अगर फायदे थे तो नुकसान उस से बढ़ कर निकलने लगे. औनलाइन शिक्षा के माध्यमों में जो पठन सामग्री बनाई गई और भेजी गई, वह केवल जल्दबाजी में तैयार की गई सामग्री थी.
बायजूस, अरबन प्रो, अनअकेडमी और वेदांतु जैसे औनलाइन प्लेटफौर्म्स किसी को भी शिक्षक बना कर खड़ा कर दे रहे थे. बिना नियमकानूनों के शिक्षा दी जाने लगी. कोनेकोने में शिक्षा पहुंच तो रही थी लेकिन असभ्य और अशुद्ध तरीके से बिना नियमकानून के आज शिक्षा का स्तर दिनबदिन गिरता जा रहा है, जिस में औनलाइन शिक्षा का बड़ा हाथ है.
किताबों का महत्त्व कम होता जा रहा है. युवा औडियोवीडियो के अलावा कुछ देखना और सुनना ही नहीं चाहते दिन के 2 से 3 घंटे मोबाइल को देने वाले युवा सारा दिन स्क्रीन को दे रहे हैं, जिस से स्वास्थ्य समस्याएं पैदा हो रही हैं.
इस से आखों में दर्द, नजरों का कमजोर होना और माइग्रेन जैसी समस्याएं पैदा हो जाती हैं. क्लास और आसपास के माहौल से तालमेल बैठाने की कोशिश से पैदा होने वाली एंजायटी युवाओं को मानसिक रोगी बना रही है. शारीरिक इनऐक्टिविटी आलस और बीमारियों को निमंत्रण दे रही है.
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