हैमंत सोरेन ने चौथी बार झारखंड के मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली है। झारखंड की स्थापना के 24 वर्षों के बाद ऐसा पहली बार हुआ है। कि किसी मुख्यमंत्री ने दोबारा शपथ ली है। इन सब के बीच जनता ने ऐतिहासिक फैसला लिया और इंडिया गठबंधन की सरकार को पूर्ण बहुमत दिया है। दूसरी तरफ एनडीए का घुसपैठिया का मुद्दा उल्टा पड़ गया। बाहरी नेताओं के हाथ कमान देना, हेमंत सोरेन को टारगेट करना, चुनाव के दौरान छापे, पार्टी में गुटबाजी और बागी नेताओं से परेशानी हार का कारण बनी।
झारखंड के चुनावी नतीजे ने हेमंत सोरेन की जमीनी ताकत का एहसास विपक्ष को करवा दिया। हालांकि, इसकी तैयारी हेमंत सोरेन ने करीब 10 माह पहले ही शुरू कर दी थी। ऐसा नहीं है कि भाजपा ने ताकत लगाने में कोई कसर छोड़ी। भाजपा किसी भी कीमत पर झारखंड जीतना चाहती थी लेकिन हेमंत की जेल यात्रा और कल्पना का उदय, मंईयां योजना के साथ-साथ किशोरी समृद्धि योजना, गुरुजी क्रेडिट कार्ड योजना ने झारखंड में हेमंत की वापसी की आधारशिला रख दी थी।
इस परिणाम से एक बात साफ हो गई कि हेमंत की सत्ता में वापसी महिलाओं के समर्थन का परिणाम है। इस चुनाव में कुल 1.77 करोड़ मतदाताओं ने वोट डाले, इसमें 51.56% यानी 91.6 लाख महिला वोट पड़े। इस बार पुरुष वोट सिर्फ 48.4% ही पड़े। पुरुषों की तुलना में महिला वोटरों ने 3.82% अधिक को डाले हैं।
राज्य के 81 सीटों में से 68 सीटों पर महिलाओं ने पुरुषों से अधिक मतदान किया है। हेमंत सोरेन ने मंईयां योजना के जरिए महिला मतदाताओं को टारगेट किया और सफलता पायी। चुनाव से पहले ऋण माफी योजना को लांच किया और किसानों को आर्थिक सहायता दी गई। जब भाजपा ने उसके जवाब में गोगो दीदी योजना में 2100 रुपए हर महीने देने का वादा किया तब हेमंत सरकार ने दिसंबर से मंईयां योजना की राशि 1000 रुपए से बढ़ाकर 2500 रुपए करने का निर्णय किया।
महिलाओं के बीच इस योजना ने दोतरफा असर किया। जिन्हें इसका लाभ मिल चुका था, वह संतुष्ट थीं, जिन्हें नहीं मिला था उन्हें मिलने की उम्मीद थी। चुनाव से पहले सत्ता पक्ष की मंईयां योजना का पैसा मिल चुका था, इसलिए महिलाओं ने इस पर ज्यादा भरोसा किया। ऐसा पहले मध्य प्रदेश में हुआ और अब झारखंड और महाराष्ट्र में भी महिला वोटों को रिझाने में बड़ी भूमिका निभाई।
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स्त्री चेतना, पर्यावरण और सामाजिक सरोकारों से जुड़ी सुप्रतिष्ठित लेखिका आकांक्षा यादव के आलेखों का संग्रह 'प्रकृति, संस्कृति और स्त्री' को पढ़ते हुए जहां हम विषयवार उनके विचारों, विवरणों और विवेचनों से प्रभावित होते हैं, वहीं हम निबंध विधा के महत्व को भी जान पाते हैं।
जन-गण-मन का भाग्य विधाता है संविधान
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संकट में पाकिस्तानी शिया
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डिजिटल अरेस्ट डर के आगे हार!
आज के युग में मोबाइल या लैपटॉप आम आदमी के जीवन में काफी प्रसांगिक ये हैं। लेकिन डिजिटल विकास तमाम खूबियां के साथ कुछ खामियां भी लाया है। सात समुंदर पार बैठा शख्स भी किसी से नजदीकियां बढ़ा सकता है, लेकिन इस शख्स की सोच के बारे में कोई डिवाइस नहीं बता सकती है कि वह किस श्रेणी का इंसान है। यहीं से साइबर क्राइम की शुरुआत होती है।
शीतकालीन चारधाम यात्रा में भी गुलजार होगी देवभूमि
शीतकाल के छह महीने भगवान बदरी विशाल की पूजा चमोली जिले में स्थित योग-ध्यान बदरी मंदिर पांडुकेश्वर व नृसिंह मंदिर जोशीमठ, बाबा केदार की पूजा रुद्रप्रयाग जिले में स्थित ओंकारेश्वर मंदिर ऊखीमठ और मां गंगा व देवी यमुना की पूजा क्रमशः उत्तरकाशी जिले में स्थित गंगा मंदिर मुखवा (मुखीमट) और यमुना मंदिर खरसाली (खुशीमठ) में होती है।
कैसे अमेरिकी जासूसों की चीफ बनी - प्रिंसेज ऑफ द आरएसएस
बहुत जल्द अमेरिका की राष्ट्रीय खुफिया एजेंसियों की कमान नवनियुक्त निदेशक तुलसी गबाई के हाथ में होगी। अमेरिका की पहली हिंदू सांसद तुलसी का आरएसएस और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से पुराना रिश्ता रहा है। संघ परिवार से जुड़े भारतीय मूल के अमेरिकी हिंदू नागरिक उनके लिए हर चुनाव में लाखों डालर का चंदा जुटाते हैं। आरएसएस के इसी दुलार के कारण अमेरिका में तुलसी 'प्रिंसेज ऑफ द आरएसएस' के नाम से चर्चित हैं। पहले तुलसी का डेमोक्रेटिक पार्टी छोड़ना फिर अचानक डोनाल्ड ट्रम्प को समर्थन देना और फिर रिपब्लिकन पार्टी का दामन थामकर इस मुकाम तक पहुंचना हॉलीबुड के किसी हाई प्रोफाइल पॉलिटिकल ड्रामे से कम नहीं। भारतीय मामलों में अमेरिकी खुफिया एजेंसियों की बेवजह 'अति सक्रिय' होने के बाद अचानक खुफिया एजेंसियों की कमान तुलसी गबार्ड को दिए जाने को भारत के कूटनीतिक दांव के रूप में देखा जा रहा है।
प्रदूषण से सांसत में जान
दिल्ली राजधानी क्षेत्र में आजकल हवा में पीएम 10 का स्तर 318 और पीएम 2.5 का स्तर 177 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर से ज्यादा है जिसके फिलहाल कम होने की उम्मीद बेमानी है। जबकि स्वास्थ्य की दृष्टि से पीएम 10 का स्तर 100 से कम और पीएम 2.5 का स्तर 60 से कम ही उचित माना जाता है। खतरनाक स्थिति यह है कि दिल्ली के आसमान पर अब धुंध की परत साफ दिखाई दे रही है।
पीके अपनी पार्टी की रणनीति में हुए फेल
पीके के नाम से मशहूर प्रशांत किशोर ने जनसुराज पार्टी बनाने के करीब 40 दिन बाद अपने प्रत्याशियों को चुनाव लड़ाया। प्रत्याशियों का चयन बहुत सोच-समझ किया गया। पीके की ओर से जीत के दावे भी थे, लेकिन वह परिणाम के रूप में सामने नहीं आ सके। हालांकि, पीके इस बात से थोड़े खुश जरूर होंगे कि तीन सीटों पर जनसुराज के प्रत्याशी तीसरे स्थान पर रहे।