पूर्णिया जिले के ढोकवा गांव की किरण देवी 'अरण्यक एग्री प्रोड्यूसर कंपनी' की बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स की सदस्य हैं. अरण्यक पहली कंपनी है, जिसे बिहार में स्वयं सहायता समूहों के जरिए महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने में जुटी संस्था जीविका ने शुरू किया था. किरण देवी याद करती हैं, “25 नवंबर 2009 को यह कंपनी स्थापित हुई थी. पहले इसमें शेयर धारक के रूप में सिर्फ 1,200 महिलाएं जुड़ी थीं. अब संख्या 5, 753 हो चुकी है. कंपनी मक्का, मखाना और केला जैसे कृषि उत्पादों को किसानों से खरीदती है और फिर उन्हें ऊंची कीमत में बेचती है. इसके अलावा कंपनी की अपनी खाद और बीज की दुकान भी है. पिछले साल हमने 5.5 करोड़ रुपए के मक्के का कारोबार किया." पर जब उनसे पूछा जाता है। कि पिछले 13-14 साल में कंपनी से उन्हें क्या हासिल हुआ, तो वे चुप्पी लगा जाती हैं. बहुत कुरेदने पर कहती हैं, “हमलोगों को क्या लाभ होगा? कंपनी जो कमाती है, उसका ज्यादातर हिस्सा कंपनी के दफ्तर, स्टाफ और दुकान के मेंटेनेंस में खर्च हो जाता है. इस वक्त कंपनी में 150 से ज्यादा का स्टाफ काम करता है, उनको वेतन दिया जाता है. बचेगा क्या? हमको तो बस दो बार बोनस मिला. एक बार 8,000 रुपए और एक बार 3,000 रुपए. बस."
अरण्यक एग्री प्रोड्यूसर कंपनी को मुंबई की नेशनल कमोडिटी ऐंड डेरिवेटिव्स एक्सचेंज (नेस्डेक्स) संस्था वायदा कारोबार में बेहतरीन प्रयोग के लिए सम्मानित कर चुकी है. कंपनी के सीईओ की तनख्वाह 75,000-1,00,000 रु. महीने के बीच है. अकाउंटेंट तक की सैलरी 30,000 रुपए से ज्यादा है. मगर अपनी ही कंपनी के लिए खट रहीं किरण देवी और उनके जैसी दूसरी जीविका दीदियों को हर साल औसतन एक हजार रुपए भी हासिल नहीं हो पा रहे. सारा लाभांश स्टाफ और मेंटेनेंस पर खर्च.
किरण देवी ही नहीं, बिहार में महिलाओं की आर्थिक सफलता के रूप में प्रचारित जीविका संस्था से जुड़ी 1.30 करोड़ से ज्यादा महिलाओं की यही कहानी है. तमाम कोशिशों के बावजूद जीविका से जुड़ी 65 फीसद महिलाओं की पारिवारिक मासिक आय 6,000 रु. महीने से कम है (देखें बॉक्स).
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