अमेरिकी शॉर्ट-सेलर हिंडनबर्ग रिसर्च ने 24 जनवरी को एक छोटा-मोटा भूचाल सा ला दिया जब इसने भारत के सबसे बड़े व्यापारिक समूहों में से एक अदाणी समूह के बारे में एक सनसनीखेज रिपोर्ट प्रकशित की. इस रिपोर्ट में हिंडनबर्ग ने कई आरोप लगाए हैं जिनमें टैक्स हेवन माने जाने वाले देशों में स्थित शेल फर्मों के माध्यम से और बही-खातों में गड़बड़झाला करके, ग्रुप की ओर से अपनी कंपनियों के शेयरों में हेरफेर करना शामिल था. अदाणी एंटरप्राइजेज जिस समय अपने फॉलो-ऑन पब्लिक ऑफर को लॉन्च करने की योजना बना रहा था, उसके ठीक पहले हुए इस खुलासे के बाद समूह की नौ सूचीबद्ध कंपनियों के शेयरों की बिकवाली तेज हो गई. इससे उनकी कीमतें भारतीय बाजारों में औंधे मुंह गिर गईं. इसने न केवल निवेशकों को 120 अरब डॉलर (लगभग 10 लाख करोड़ रुपए) का नुक्सान हुआ, बल्कि एक सप्ताह के भीतर कंपनियों की बाजार पूंजी भी घटकर आधी हो गई. हालांकि अदाणी समूह ने बाद में अपने स्टॉक की कीमतों में भारी गिरावट को रोक लिया क्योंकि समूह की फर्मों ने मजबूत तिमाही परिणाम दिखाए और समूह की तीन फर्मों-अदाणी पोर्ट्स विशेष आर्थिक क्षेत्र (एपीएसईजेड), अदाणी ग्रीन एनर्जी और अदाणी ट्रांसमिशन–में गिरवी शेयर छुड़ाने के लिए 1 अरब डॉलर (लगभग 8,280 करोड़ रुपए) से अधिक का भुगतान किया लेकिन कुछ कंपनियों के शेयर की कीमतें गिरती रहीं.
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शब्द हैं तो सब है
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अब आई मगरमच्छों की बारी
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नहरें: थीं तो बेशक ये पानी के ही लिए
सीवान शहर के पास जुड़कन गांव के कृष्ण कुमार अपने गांव में खुदी पतली-सी नहर की पुलिया पर बैठे मिले. ऐन नहर के किनारे उनका पंपसेट लगा था, जिससे वे अपने खेत की सिंचाई कर रहे थे. वे नहर के बारे में पूछते ही उखड़ गए और कहने लगे, \"50 साल पहले नहर की खुदाई हुई थी. हमारे बाप-दादा ने भी इसके लिए अपनी जमीन दी. हमारा दस कट्ठा जमीन इसमें गया. जमीन का पैसा मिल गया था. मगर इस नहर में एक बूंद पानी नहीं आया. सब जीरो हो गया, जीरो पानी आता तो क्या हमको पंपसेट में डीजल फूंकना पड़ता.\"