महज 18 साल की देवांशी सूद अपने सपनों की राह संवारने के लिए अगले महीने अमेरिका जाने को तैयार हैं. सूद ने गुरुग्राम के हेरिटेज एक्सपेरिएंशियल स्कूल में पीसीएमई (भौतिक शास्त्र, रसायन विज्ञान, गणित और अर्थशास्त्र) में पढ़ाई की है और ग्रेजुएशन के लिए कंप्यूटेशनल मीडिया में अमेरिका के जॉर्जिया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में चार साल के कोर्स में दाखिला लिया है. वे कहती हैं, "यह डिग्री मुझे प्रयोग करने का मौका देगी और मेरी रुचि के विषय पर्यावरण प्रौद्योगिकी में मददगार होगी, जिस विषय का अमेरिका में बड़ा बाजार है." सूद पश्चिम जाना चाह रही हैं क्योंकि जिस विषय में उनकी दिलचस्पी है, उसकी पढ़ाई भारत में उपलब्ध नहीं है, और इससे उन्हें विविध विषयों में अपनी रुचि के इजाफे का भी मौका मिलेगा. वे कहती हैं, "विज्ञान और कंप्यूटर में मेरी दिलचस्पी है, लेकिन साहित्य और राजनीति विज्ञान भी मुझे पसंद है."
हर साल जैसे ही पश्चिमी गोलार्द्ध में पतझड़ शुरू होता है, सूद जैसे हजारों युवा छात्र उच्च शिक्षा की तलाश में अमेरिका या यूरोप की ओर बढ़ जाते हैं, या फिर पूरब में ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण पूर्व एशियाई देशों का रुख करते हैं. ऐसा नहीं है कि भारतीय छात्र पहले उच्च शिक्षा के लिए विदेश नहीं जाते थे, लेकिन कई देशों में अंतरराष्ट्रीय डिग्री हासिल करने वालों की संख्या और विभिन्न प्रकार के पाठ्यक्रमों में तेजी से वृद्धि हुई है. इस साल फरवरी में केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय ने लोकसभा को बताया कि 2022 में 7, 50, 365 नए छात्रों ने उच्च अध्ययन के लिए विदेश की उड़ान भरी, जो छह वर्षों में सबसे अधिक संख्या है, और 2019 की तुलना में 1,61,642 अधिक है. इसकी पुष्टि एक और हलके से हुई. विदेश में पढ़ाई के ऑनलाइन प्लेटफॉर्म यॉकेट ने पाया कि 2022 में कुल 13.2 लाख भारतीय छात्र विदेश में पढ़ रहे हैं, जो 2021 में 11.4 लाख से अधिक है. गुरुग्राम स्थित रणनीति सलाहकार फर्म रेडसियर को उम्मीद है कि 2024 तक यह संख्या 18 लाख तक पहुंच जाएगी. हालांकि अमेरिका में पढ़ाई करने वाले किसी और देश के मुकाबले सबसे अधिक चीन के छात्र हैं लेकिन भारतीय छात्रों की तादाद तेजी से आगे बढ़ रही है और यह संख्या इस साल चीन को पीछे कर सकती है.
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परदेस में परचम
भारतीय अकादमिकों और अन्य पेशेवरों का पश्चिम की ओर सतत पलायन अब अपने आठवें दशक में है. पहले की वे पीढ़ियां अमेरिकी सपना साकार होने भर से ही संतुष्ट हो ती थीं या समृद्ध यूरोप में थोड़े पांव जमाने का दावा करती थीं.
भारत का विशाल कला मंच
सांफ्ट पावर से लेकर हार्ड कैश, हाई डिजाइन से लेकर हाई फाइनेंस आदि के संदर्भ में बात करें तो दुनिया के अन्य हिस्सों की तरह भारत की शीर्ष स्तर की कला हस्तियां भी भौतिक सफलता और अपनी कल्पनाओं को परवान चढ़ाने के बीच एक द्वंद्व को जीती रहती हैं.
सपनों के सौदागर
हम ऐसी दुनिया में रहते हैं जहां मनोरंजन से हौवा खड़ा हो है और उसी से राहत भी मिलती है.
पासा पलटने वाले महारथी
दरअसल, जिंदगी की तरह खेल में भी उतारचढ़ाव का दौर चलता रहता है.
गुरु और गाइड
अल्फाज, बुद्धिचातुर्य और हास्यबोध उनके धंधे के औजार हैं और सोशल मीडिया उनका विश्वव्यापी मंच.
निडर नवाचारी
खासी उथल-पुथल मचा देने वाली गतिविधियों से भरपूर भारतीय उद्यमिता के क्षेत्र में कुछ नया करने वालों की नई पौध कारोबार, टेक्नोलॉजी और सामाजिक असर पैदा करने के नियम नए सिरे से लिख रही है.
अलहदा और असाधारण शख्सियतें
किसी सर्जन के चीरा लगाने वाली ब्लेड की सटीकता उसके पेशेवर कौशल की पहचान होती है.
अपने-अपने आसमान के ध्रुवतारे
महानता के दो रूप हैं. एक वे जो अपने पेशे के दिग्गजों के मुकाबले कहीं ज्यादा चमक और ताकत हासिल कर लेते हैं.
बोर्डरूम के बादशाह
ढर्रा-तोड़ो या फिर अपना ढर्रा तोड़े जाने के लिए तैयार रहो. यह आज के कारोबार में चौतरफा स्वीकृत सिद्धांत है. प्रतिस्पर्धा से प्रेरित होकर भारत के सबसे ताकतवर कारोबारी अगुआ अपने साम्राज्यों को मजबूत कर रहे हैं. इसके लिए वे नए मोर्चे तलाश रहे हैं, गति और पैमाने के लिए आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस सरीखे उथल-पुथल मचा देने वाले टूल्स का प्रयोग कर रहे हैं और प्रतिस्पर्धी बने रहने के लिए नवाचार बढ़ा रहे हैं.
देश के फौलादी कवच
लबे वक्त से माना जाता रहा है कि प्रतिष्ठित शख्सियतें बड़े बदलाव की बातें करते हुए सियासी मैदान में लंबे-लंबे डग भरती हैं, वहीं किसी का काम अगर टिकता है तो वह अफसरशाही है.