ओटो वॉन बिस्मार्क के इस कथन, कि कुछ भी संभव होने की कला ही राजनीति है, को चरितार्थ करते हुए भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने शिंदे को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठाया. देवेंद्र फडणवीस उपमुख्यमंत्री बनाए गए, जबकि 2014-19 में फडणवीस के नेतृत्व वाली सरकार में शिंदे महज एक मंत्री थे.
लेकिन, एक साल बीतते-बीतते शिंदे असुरक्षित और चौतरफा घिरे नजर आ रहे हैं. राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) को तोड़ना और नेता विपक्ष अजित पवार के नेतृत्व वाले इस गुट को गठबंधन का हिस्सा बनाना कहीं न कहीं यही दिखाता है कि भाजपा को अब शिंदे के नेतृत्व और 2024 के लोकसभा और राज्य विधानसभा चुनाव में अच्छे प्रदर्शन की उनकी क्षमता पर भरोसा नहीं रहा है. अजित पवार बीती 2 जुलाई को अपने आठ अन्य पार्टी सहयोगियों के साथ सरकार में शामिल हुए और उपमुख्यमंत्री पद पर आसीन हुए.
शिंदे और उनके वफादारों ने जब शिवसेना में बगावत की थी तो इसके लिए पवार और एनसीपी को जिम्मेदार ठहराया था. उनका कहना था कि एमवीए सरकार में उपमुख्यमंत्री और वित्त मंत्री अजित पवार फंड आवंटन में एनसीपी मंत्रियों और विधायकों पर मेहरबान रहते हैं और शिवसेना मंत्रियों-विधायकों की अनदेखी करते हैं.
अब, पवार और एनसीपी के उनके खेमे के गठबंधन का हिस्सा बन जाने से शिंदे और उनके विधायक खासे निराश हैं. एनसीपी वित्त जैसे अहम विभागों पर अड़ी रही-सूत्रों के मुताबिक, भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने उनसे इसका वादा किया था - और शिंदे की शिवसेना इसका विरोध करती रही. इस वजह से विभागों के आवंटन में करीब दो हफ्ते देरी हुई और इसकी घोषणा 14 जुलाई को की गई.
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