इसमें उन्होंने कहा कि संविधान की मूल संरचना पर 'बहस का न्यायशास्त्रीय आधार' है. राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (संशोधन) विधेयक, 2023 पर बहस के दौरान उनकी तरफ से की गई टिप्पणी में पहली बार संविधान की बुनियादी संरचना के सिद्धांत को खुली चुनौती दी गई, और वह भी न्यायपालिका के एक पूर्व सदस्य की तरफ से.
हालांकि, भारतीय संविधान में कहीं भी 'बुनियादी संरचना' जैसे शब्द का कोई उल्लेख नहीं है, लेकिन समय के साथ दस्तावेज की मूल भावना की रक्षा और संरक्षण के लिए ये सिद्धांत ऐसे दिशा-निर्देश के रूप में विकसित हुए, जिनका उल्लंघन न किया जा सके. सर्वोच्च अदालत संसद से पारित किसी भी संवैधानिक संशोधन को रद्द कर सकती है, अगर वह संविधान की मूल संरचना का उल्लंघन करता हो. यह सिद्धांत पहली बार 1973 में केशवानंद भारती मामले के दौरान प्रमुखता से उभरकर सामने आया था.
यह नए संसद भवन में आयोजित पहला मॉनसून सत्र था, और कार्यवाही में तमाम व्यवधानों और जबरदस्त शोर-शराबे के बावजूद इस दौरान कुछ बेहद अहम विधेयकों को मंजूरी मिली, जो नागरिकों पर दूरगामी असर डालने वाले साबित होंगे. साथ ही लंबे समय तक विवाद में भी घिरे रहेंगे. मिसाल के तौर पर, डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम, 2023. यह निजी डेटा सुरक्षा के लिए कानून का रूप ले सकता है पर आलोचकों का कहना है कि यह सरकार को बड़ी तकनीकी कंपनियों पर धौंस जमाकर नागरिकों की निगरानी करने की छूट देता है.
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