लखनऊ के दक्षिण में पुरानी जेल रोड पर मौजूद इको गार्डन, हरियाली और कला के संगम को आत्मसात करता एक प्रमुख पर्यटक आकर्षण है. करीब 112 एकड़ में फैले इस पार्क का एक हिस्सा धरना स्थल के रूप में तब्दील हो चुका है. इको गार्डन के इसी हिस्से में 17 सितंबर की शाम से ही प्रदेश भर के किसान भारतीय किसान यूनियन (भाकियू) के बुलावे पर जमा होने लगे थे. अगले दिन 18 सितंबर को दिन में 11 बजे तक इको गार्डन किसानों के हुजूम से भर गया था. हर तरफ हरी पगड़ी बांधे किसान थे. रह-रह के बजने वाले रणसिंघा की गूंज किसानों में जोश भर रही थी. यह जोश अपने चरम पर पहुंचा जब इस 'किसान मजदूर अधिकार महापंचायत' के मंच पर भाकियू के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत पहुंचे. कुछ ही देर में राकेश टिकैत ने माइक थामा और एक-एक करके किसानों के मुद्दों को गिनाना शुरू किया. आलू की जमाखोरी, कम गन्ना मूल्य और भुगतान की समस्या, सरकार की मिलीभगत से फसलों की कालाबाजारी जैसे मुद्दों से टिकैत ने मौजूद किसानों की जमकर तवज्जो बटोरी. लखनऊ से ही टिकैत ने न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर गारंटी कानून की मांग को लेकर पूरे देश में एक बड़ा आंदोलन करने की घोषणा भी की. जाहिर है कि 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले किसानों को कुछ उसी ढंग से लामबंद करने की कोशिश शुरू हुई है जैसा कि दो साल पहले किसान आंदोलन के दौरान दिखा था. भाकियू नेता क की समस्याओं के जरिए सरकार को घेरने की तैयारी में जुट गए हैं. लखनऊ में भाकियू की महापंचायत के बाद सभी किसान नेताओं को अपने इलाकों के गांवों में बैठक करके किसान विरोधी सरकारी नीतियों के विरोध में जनमत तैयार करने की जिम्मेदारी सौंपी गई है.
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नहरें: थीं तो बेशक ये पानी के ही लिए
सीवान शहर के पास जुड़कन गांव के कृष्ण कुमार अपने गांव में खुदी पतली-सी नहर की पुलिया पर बैठे मिले. ऐन नहर के किनारे उनका पंपसेट लगा था, जिससे वे अपने खेत की सिंचाई कर रहे थे. वे नहर के बारे में पूछते ही उखड़ गए और कहने लगे, \"50 साल पहले नहर की खुदाई हुई थी. हमारे बाप-दादा ने भी इसके लिए अपनी जमीन दी. हमारा दस कट्ठा जमीन इसमें गया. जमीन का पैसा मिल गया था. मगर इस नहर में एक बूंद पानी नहीं आया. सब जीरो हो गया, जीरो पानी आता तो क्या हमको पंपसेट में डीजल फूंकना पड़ता.\"