किसी भी पार्टी के लिए एक भरोसेमंद विकल्प के रूप में उभरने के लिए एक जटिल राजनैतिक प्रक्रिया की जरूरत होती है, खासकर जब उसमें तेलंगाना में के. चंद्रशेखर राव (केसीआर) और उनकी भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) के दो-कार्यकाल के शासन को चुनौती देना भी शामिल हो. भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को इसका एहसास हो रहा है, क्योंकि वह खुद को एक त्रिकोणीय मुकाबले में उलझा हुआ पाती है. साथ ही, उभरती हुई कांग्रेस भी 30 नवंबर को होने वाले विधानसभा चुनाव में सत्ता हासिल करने की कोशिश कर रही है. फिर भी, भाजपा ने राज्य में अपनी ताकत झोंकने में कोई कसर नहीं छोड़ी है और उसका वास्तविक लक्ष्य 2024 का लोकसभा चुनाव है. गरीबों के लिए मुफ्त शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा का वादा करते हुए राज्य भाजपा प्रमुख जी. किशन रेड्डी कहते हैं, "अगर भाजपा सत्ता में आती है, तो उसका मुख्यमंत्री बस एक फार्महाउस तक ही सीमित नहीं होगा, बल्कि वह लोगों के बीच मौजूद रहेगा."
फौरी सियासी फायदे के लिए, पार्टी खुद को पिछड़े वर्गों के चैंपियन के रूप में पेश कर रही है और वादा कर रही है कि सत्ता में आने पर राज्य का अगला सीएम पिछड़ा वर्ग से ही होगा. यह रणनीति कारगर है क्योंकि तेलंगाना की आबादी में पिछड़ा वर्ग की आबादी आधे से अधिक (52 फीसद) है और अब तक इस वर्ग से कोई भी व्यक्ति सीएम की कुर्सी पर नहीं बैठा है. पार्टी इस वादे को गेम चेंजर मानकर इस पर बहुत भरोसा कर रही है. वर्तमान में, इसने पिछड़ा वर्ग से 32 उम्मीदवारों को टिकट दिया है, अभिनेता से नेता बने पवन कल्याण की जन सेना पार्टी के साथ गठबंधन की बात चल रही है, जो अंततः अन्य राजनैतिक दलों के पिछड़े वर्ग के उम्मीदवारों की संख्या को पार कर सकता है. इसके अलावा, भाजपा ने रेड्डी समुदाय के 24, अनुसूचित जाति के 13, अनुसूचित जनजाति के नौ और कम्मा, ब्राह्मण और वेलामा समुदाय के एक-एक व्यक्ति को पार्टी का टिकट दिया है. इन 81 उम्मीदवारों में 13 महिलाएं हैं.
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