बीएनपी ने नतीजों पर प्रतिक्रिया देशव्यापी आम हड़ताल का आह्वान करके दी. बीएनपी ने साल 2014 में हसीना सरकार पर बड़े पैमाने पर धांधली का आरोप लगाकर चुनाव का बहिष्कार किया था, लेकिन साल 2018 में वह बुरी तरह नाकाम रही थी. इस बार, उसने हड़तालों और हिंसक घटनाओं के जरिए सरकार पर दबाव बनाने की पूरी कोशिश की. लेकिन, ये रणनीतियां हसीना सरकार को रोकने में नाकाम रहीं. वैसे, बीएनपी के बहिष्कार की एक वजह पार्टी में नेतृत्व का टकराव है, जिससे उसके निर्वासित उपाध्यक्ष तारिक रहमान का नियंत्रण कमजोर हो जाएगा. हालांकि बीएनपी अपने दम पर बहुमत हासिल नहीं कर सकती. उसकी सहयोगी जमात-एइस्लामी पर प्रतिबंध लगा हुआ है, जो साल 1971 में कत्लेआम में पाकिस्तानी फौज की सहयोगी थी.
चुनाव से पहले हसीना पर पश्चिमी देशों का भारी दबाव था, जहां से स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों के लिए सार्वजनिक बयान जारी किए गए थे. इस मामले में अमेरिका सबसे अधिक मुखर था और उसने बांग्लादेश के आतंकवाद विरोधी संगठन रैपिड ऐक्शन बटालियन के वरिष्ठ अधिकारियों को काली सूची में डाल दिया था. उसने यह भी घोषणा की थी कि चुनाव प्रक्रिया में धांधली में शामिल किसी भी व्यक्ति को वीजा देने से इनकार कर दिया जाएगा. ढाका में अमेरिकी राजदूत प्रधानमंत्री पर दबाव बनाने के लिए विपक्षी दलों और सरकार विरोधी गैर-सरकारी संगठनों को लामबंद करने के प्रयास में थे. लेकिन दृढ़ हसीना और बीएनपी के बहिष्कार के सामने यह रणनीति नाकाम रही.
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