प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बीते कुछ महीने से कह रहे हैं कि उनके लिए सिर्फ चार जातियां हैं: युवा, गरीब, महिला और किसान जब से बिहार में जाति आधारित सर्वेक्षण हुआ है और देश भर में जातिगत जनगणना की बात उठी है, तब से मोदी जात-पांत की पारंपरिक राजनीति करने के लिए विपक्षी दलों पर आक्रामक हैं. लेकिन भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की लोकसभा चुनाव की रणनीति में जाति आधारित सोशल इंजीनियरिंग की छाप स्पष्ट तौर पर दिख रही है.
लोकसभा चुनाव के मद्देनजर भाजपा ने अनुसूचित जाति-जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग की अलग-अलग जातियों को रिझाने के लिए विशेष कार्यक्रम चलाने की योजना बनाई है. उसे लगता है कि इन कार्यक्रमों के माध्यम से वह इन जातियों को अपने साथ जोड़ने में कामयाब होगी और इसका सीधा असर लोकसभा चुनावों में उसकी सीटों पर पड़ेगा.
अनुसूचित जाति के मतदाताओं में अपनी पैठ बढ़ाने के लिए भाजपा आने वाले दिनों में कई राज्यों में बौद्ध सम्मेलन करने की योजना बना रही है. उत्तर प्रदेश के अलावा पार्टी इन सम्मेलनों का आयोजन पंजाब, हिमाचल प्रदेश, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, छत्तीसगढ़, राजस्थान, कर्नाटक और तेलंगाना में करने की योजना तैयार कर रही है. छत्तीसगढ़ को छोड़कर बाकी राज्यों में दलितों की आबादी 15 प्रतिशत या इससे ज्यादा है. इस तरह के सम्मेलन 2017 में हुए उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के पहले चर्चा में आए थे. तब भाजपा ने अखिल भारतीय भिक्खु महासंघ की मदद से उन क्षेत्रों में कई बौद्ध सम्मेलन किए थे, जहां दलित मतदाताओं की संख्या अच्छी-खासी थी. महासंघ ने 2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के पहले एक धम्म चक्र यात्रा निकाली थी, जिसे केंद्रीय मंत्री राजनाथ सिंह ने हरी झंडी दिखाई थी.
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