राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने 2 सितंबर को जब अपनी अखिल भारतीय समन्वय बैठक यानी संबद्ध संगठनों का तीन दिवसीय राष्ट्रीय समागम खत्म किया, तो सारी नजरें प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर की प्रेस कॉन्फ्रेंस पर थीं. उन्होंने निराश भी नहीं किया और उसमें शामिल एक शख्स के शब्दों में, "दो-एक बम गिरा" ही दिए. एक तो उन्होंने स्पष्ट किया कि संघ विवादास्पद राष्ट्रीय जाति जनगणना के पक्ष में (बेशक कुछ शर्तों के साथ) है और दूसरे उन्होंने सार्वजनिक रूप से स्वीकार किया कि आरएसएस और उसकी वैचारिक संतति यानी केंद्र में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के बीच कुछ अनसुलझे “मुद्दे” हैं.
आंबेकर ने यह भी कहा कि यह "पारिवारिक मामला" है जिसे "बातचीत" से सुलझा लिया जाएगा, पर वे इतना कुछ तो कह ही चुके थे जो अगले दिन की सुर्खियों के लिए काफी था. जाति जनगणना वैसे तो जाहिरा तौर पर समाज के हाशिए पर पड़े लोगों के हित में कल्याणकारी उपायों का दायरा बढ़ाने के लिए है, लेकिन यह विपक्ष की प्रमुख मांग रही है, जिसे सत्तारूढ़ पार्टी ने पहले "हिंदू समाज को बांटने" की कोशिश कहकर खारिज कर दिया था. जहां तक 'पारिवारिक मामले' की बात है, भाजपा के प्रवक्ताओं ने फटाफट मौन धारण कर लिया, तो केरल के पलक्कड़ में संघ के 40 संबद्ध संगठनों की बैठक में शामिल पार्टी अध्यक्ष जे. पी. नड्डा ने भी ठीक यही किया.
भाजपा के जानकारों का कहना है कि आंबेकर ने जो कहा, उसमें कुछ भी नया नहीं है, बस इसके कहने का वक्त चौंकाने वाला था. भगवा पार्टी मंथन के दौर से गुजर रही है, खासकर ऐसे वक्त जब आम चुनाव में अप्रत्याशित उलटफेर से वह बैकफुट पर आ गई है और बहुत लंबे वक्त बाद ढुलमुल और हिचकिचाहट से भरी दिखाई देती है. इन कुछ महीनों में क्या फर्क आ गया: अप्रैल में वे भाजपा की शानदार जीत की बातें कर रहे थे, जिसमें 370 से ज्यादा सीटें तो पक्की थीं और "400 पार" भी पकड़ में दिख रही थी. नड्डा पार्टी के "आत्मनिर्भर" होने की बात कर रहे थे, जो अब आरएसएस के मातहत नहीं रह गई थी. यही नहीं, आला दिग्गजों की मेज पर जगह पाने को बेताब राज्यों के सहयोगी दल भी अपनी-अपनी मचानों से नीचे आ रहे थे.
هذه القصة مأخوذة من طبعة September 18, 2024 من India Today Hindi.
ابدأ النسخة التجريبية المجانية من Magzter GOLD لمدة 7 أيام للوصول إلى آلاف القصص المتميزة المنسقة وأكثر من 9,000 مجلة وصحيفة.
بالفعل مشترك ? تسجيل الدخول
هذه القصة مأخوذة من طبعة September 18, 2024 من India Today Hindi.
ابدأ النسخة التجريبية المجانية من Magzter GOLD لمدة 7 أيام للوصول إلى آلاف القصص المتميزة المنسقة وأكثر من 9,000 مجلة وصحيفة.
بالفعل مشترك? تسجيل الدخول
मिले सुर मेरा तुम्हारा
राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता संगीतकार अमित त्रिवेदी अपने ताजा गैर फिल्मी और विधा विशेष से मुक्त एल्बम आजाद कोलैब के बारे में, जिसमें 22 कलाकार शामिल
इंसानों की सोहबत में आलसी और बीमार
पालतू जानवर अपने इंसानी मालिकों की तरह ही लाइफस्टाइल से जुड़ी बीमारियों का शिकार हो रहे हैं और उन्हें वही मेडिकल केयर मिल रही है. इसने पालतू जानवरों के लिए सुपर स्पेशलाइज्ड सर्जरी और इलाज के इर्द-गिर्द एक पूरी इंडस्ट्री को जन्म दिया
शहरी छाप स लौटी रंगत
गुजराती सिनेमा दर्शक और प्रशंसा बटोर रहा है क्योंकि इसके कथानक और दृश्य ग्रामीण परिवेश के बजाए अब शहरी जीवन के इर्द-गिर्द गूंथे जा रहे हैं. हालांकि सीमित संसाधन और बंटे हुए दर्शक अब भी चुनौती बने हुए हैं
चट ऑर्डर, पट डिलिवरी का दौर
भारत का खुदरा बाजार तेजी से बदल रहा है क्योंकि क्विक कॉमर्स ने तुरंत डिलिवरी के साथ पारंपरिक खरीदारी में उथल-पुथल मचा दी है. रिलायंस जियो, फ्लिपकार्ट और अमेजन जैसे कॉर्पोरेट दिग्गजों के इस क्षेत्र में उतरने से स्पर्धा तेज हो गई है जिससे अंत में ताकत ग्राहक के हाथ में ही दिख रही
'एटम बम खुद फैसले नहीं ले सकता था, एआइ ले सकता है”
इतिहास के प्रोफेसर और मशहूर पब्लिक इंटेलेक्चुअल युवाल नोआ हरारी एक बार फिर चर्चा में हैं. एआइ के रूप में मानव जाति के सामने आ खड़े हुए भीषण खतरे के प्रति आगाह करती उनकी ताजा किताब नेक्सस ने दुनिया भर के बुद्धिजीवियों का ध्यान खींचा है.
सरकार ने रफ्ता-रफ्ता पकड़ी रफ्तार
मुख्यमंत्री सिद्धरामैया उपचुनाव में कांग्रेस के शानदार प्रदर्शन की बदौलत राजनैतिक चुनौतियों से निबटने लोगों का विश्वास बहाल करने और विकास तथा कल्याण की महत्वाकांक्षी योजनाओं पर दे रहे जोर
हम दो हमारे तीन!
जनसंख्या में गिरावट की आशंकाओं ने परिवार नियोजन पर बहस को सिर के बल खड़ा कर दिया है, क्या परिवार बड़ा बनाने के पैरोकारों के पास इसकी वाजिब वजहें और दलीलें हैं ?
उमरता कट्टरपंथ
बांग्लादेश में हिंदुओं का उत्पीड़न जारी है, दूसरी ओर इस्लामी कट्टरपंथ तेजी से उभार पर है. परा घटनाक्रम भारत के लिए चिंता का सबब
'इससे अच्छा तो झाइदारिन ही थे हम'
गया शहर के माड़रपुर में गांधी चौक के पास एक बैटरी रिक्शे पर बैठी चिंता देवी मिलती हैं. वे बताती हैं कि वे कचहरी जा रही हैं. उनके पास अपनी कोई सवारी नहीं है, सरकार की तरफ से भी कोई वाहन नहीं मिला है.
डीएपी की किल्लत का जिम्मेदार कौन?
3त्तर प्रदेश में आजमगढ़ के किसान वैसे तो कई दिनों से परेशान थे लेकिन 11 दिसंबर को उन्होंने डीएपी यानी डाइअमोनियम फॉस्फेट खाद उपलब्ध कराने की गुहार मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ तक पहुंचा दी.