ता जो चाहते हैं, मतदाता रूपी लोकतंत्र के देवता उसे अपने ढंग से देते हैं. नरेंद्र मोदी के लिए दशक भर से प्रधानमंत्री होने का सबसे शिखर गौरव 2024 में राजनेताओं की बिरली जमात में शामिल होना था. इसके लिए उन्हें देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के रिकॉर्ड की बराबरी करनी थी, जिन्होंने पूर्ण बहुमत के साथ लगातार तीन कार्यकाल हासिल किया था. मोदी का इरादा आम चुनाव में धमाकेदार बहुमत के साथ यह उपलब्धि हासिल करने का था. साल की शुरुआत काफी मांगलिक ढंग से हुई जब 22 जनवरी को उन्होंने अयोध्या में श्रद्धा जगाने वाले नए राम मंदिर के भीतर यजमान के रूप में बालक राम की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा के समारोह की अगुआई की. इस कार्यक्रम को हिंदू पुनरोत्थान और गौरव के भव्य प्रदर्शन के रूप में देखा गया. युग चेतना को व्यक्त करते हुए मोदी ने अपना भावप्रवण भाषण यह कहकर शुरू किया, “हमारे राम लला तंबू में अब और नहीं रहेंगे, वे अब इस दिव्य मंदिर में विराजेंगे.”
मंदिर निर्माण के सदी-पुराने संघर्ष की भौतिक समाप्ति और देश के हिंदू बहुसंख्यकों के लिए इस घटना के गहरे भावनात्मक खिंचाव को जून में होने वाले आम चुनाव के लिए गेमचेंजर माना जा रहा था. इस कदर कि मोदी ने 'अबकी बार, चार सौ पार' के युद्धघोष के साथ अपनी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और उसके राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के लिए कहीं ऊंचा लक्ष्य तय कर दिया. यह आत्मविश्वास भाजपा के इस यकीन से उपजा था कि उसने 2024 की शुरुआत में ही इंडिया ब्लॉक के मुख्य प्रस्तावक तथा बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को अपने पाले में लाकर विपक्षी गठबंधन को करारा झटका दे दिया है. दूसरा तुरुप का पत्ता था, महाराष्ट्र में 2022 में ही शिवसेना में टूट करवाकर राज्य की सत्ता हथिया लेना और बाद में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी में भी फूट डलवा देना.
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फिर उसी बुलंदी पर
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आखिरकार आया अस्तित्व में
यह एक भूभाग पर हिंदू समाज के स्वामित्व का प्रतीक था. इसके निर्माण से भक्तों को एक तरह की परिपूर्णता और उल्लास की अनुभूति हुई. अलग-अलग लोगों के लिए राम मंदिर के अलग-अलग अर्थ रहे हैं और उसमें आधुनिक भारत की सभी तरह की जटिलताओं- पेचीदगियों की झलक देखी जा सकती है
बंगाल विजयनी
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शूटिंग क्वीन
मनु भाकर ने पेरिस 2024 ओलंपिक में बदलाव की शानदार पटकथा लिखी. अटूट इच्छाशक्ति से अतीत की निराशा को पीछे छोड़कर उन्होंने अपना भाग्य गढ़ा
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बातें दिल्ली के व्यंजनों की
एकेडमिक, इतिहासकार और देश के सबसे पसंदीदा खानपान लेखकों में से एक पुष्पेश पंत की ताजा किताब फ्रॉम द किंग्ज टेबल टु स्ट्रीट फूड: अ फूड हिस्ट्री ऑफ देहली में है राजधानी के स्वाद के धरोहर की गहरी पड़ताल
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