इजरायल के ऊपर हमास ने जो बर्बरता बरपायी है उसकी बिना किसी किंतु-परंतु के बेशर्त निंदा की जानी चाहिए। नरसंहार, बलात्कार, गांवों और सामूहिक खेतों से लोगों को उठाकर बंधक बनाया जाना, और एक संगीत समारोह में किया गया कत्लेआम यह पुष्ट करता है कि हमास का वास्तविक लक्ष्य इजरायली राज्य और सारे इजरायलियों को नष्ट करना है। इतना कहने के बाद अब मौजूदा परिस्थिति ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में विश्लेषण की मांग करती है। इसे किसी सफाई के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए, बल्कि आगे के रास्ते पर स्पष्टता कायम करने के लिए यह जरूरी है।
सबसे पहले तो चौतरफा व्याप्त विषाद पर बात होनी चाहिए, जिसने ज्यादातर फलस्तीनियों की जिंदगी को जकड़ा हुआ है। याद करें करीब दशक भर पहले यरूशलम की सड़कों पर चला छिटपुट आत्मघाती हमलों का वह सिलसिला, जब एक आम फलस्तीनी किसी यहूदी को देखते ही चाकू निकाल कर मार देता था, यह अच्छे से जानते हुए कि उसके बाद उसकी मौत होना तय थी। इन कथित आतंकी गतिविधियों में कोई संदेश नहीं होता था, ‘फलस्तीन को आजाद करो’ का नारा नहीं गूंजता था। न ही ऐसी घटनाओं के पीछे कोई बड़ा संगठन था। ये सब हताशा में डूबे हुए लोगों की निजी हिंसात्मक कार्रवाइयां थीं।
हालात अचानक तब बुरे हुए जब बेन्यामिन नेतन्याहू ने ऐसे धुर दक्षिणपंथी दलों के साथ मिलकर नई सरकार बना ली, जो वेस्ट बैंक की फलस्तीनी बस्तियों को कब्जाने और वहां यहूदियों को बसाने की खुलेआम पैरवी करती हैं। मसलन, राष्ट्रीय सुरक्षा के प्रभारी नए मंत्री इतमार बेन-ग्विर यह मानते हैं कि “(वेस्ट बैंक में) स्वतंत्र होकर घूमने-फिरने के मेरे अधिकार, मेरी पत्नी के अधिकार, मेरे बच्चों के अधिकार अरबों के अधिकारों से कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण हैं।” इस आदमी को अरब विरोधी चरमपंथी दलों से जुड़े होने के चलते सैन्य सेवा से प्रतिबंधित किया जा चुका है। जिन दलों से उसका जुड़ाव था, उन्हें 1994 में हेब्रॉन में हुए अरबों के नरसंहार के बाद आतंकवादी संगठन घोषित कर दिया गया था।
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