बात उन दिनों की है जब 2012 में पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह जिंदा थे और कौल सिंह हुआ करते थे कांग्रेस अध्यक्ष। आज कुछ वर्षों पुरानी यह बातें जेहन में अचानक कौंध गई, जब टीवी और सोशल मीडिया में हिमाचल के राजनीतिक घटनाक्रम को देश देख रहा था। हिमाचल कांग्रेस में आंख दिखाने का घटनाक्रम कोई नया नहीं है। दबाव की राजनीति भी कोई नई नहीं है। हां, इतना जरूर है कि वीरभद्र परिवार को कभी किसी ‘कांधे’ की जरूरत नहीं पड़ी लेकिन इस बार कांधा भाजपा का मिला है।
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