आम चुनाव 2024 ऐसे-ऐसे घटनाक्रम और मुद्दे उछाल रहा है, जो हैरान कर देता है। यह तो सही है कि कई चुनावों बाद महंगाई, बेरोजगारी, बढ़ती गैर-बरारबरी जैसे आम लोगों की जिंदगी से जुड़े आर्थिक मुद्दे बहस के केंद्र में आते दिख रहे हैं। लेकिन चुनावी भाषणों में ये जिस तरह उठ रहे हैं, वह शायद ही कभी सुना गया होगा। मसलन, विरासत टैक्स का ही मामला लें। कांग्रेस के घोषणा-पत्र में, जिसे वह न्याय-पत्र कहती है, जाति जनगणना और आर्थिक-सामाजिक सर्वेक्षण का वादा है। इसमें दलितों, पिछड़ों, अल्पसंख्यकों को हक और हिस्सेदारी देने के वादे के जवाब में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उसे “मुस्लिम लीग का घोषणा-पत्र’’ बता दिया। तेलंगाना में एक रैली में कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कहा, “हमारी सरकार सत्ता में आती है तो हम सबसे पहले पिछड़ी जातियों, एससी, एसटी, अल्पसंख्यकों और अन्य जातियों की स्थिति जानने के लिए वित्तीय और संस्थागत सर्वेक्षण कराएंगे।”
लेकिन संसाधनों के बंटवारे पर ‘इंडियन ओवरसीज कांग्रेस’ के अध्यक्ष सैम पित्रोदा ने शिकागो से समाचार एजेंसी एएनआइ से बातचीत में कहा, "मसलन, एक उदाहरण अमेरिका के कुछेक राज्यों में अरबपतियों पर लगने वाला इनहेरिटेज टैक्स की व्यवस्था है यानी किसी की मृत्यु के बाद उसकी संपत्ति का 45% हिस्सा उसके बच्चों और 55% सरकार के पास जाता है। भारत में ऐसी व्यवस्था नहीं है। ऐसे मुद्दों पर बहस और चर्चा करनी चाहिए।"
सैम पित्रोदा के इस बयान को भाजपा ने लपक लिया। नरेंद्र मोदी ने राजस्थान की एक रैली में कहा, “कांग्रेस ने अपने घोषणपत्र में वादा किया है कि अगर वह सत्ता में आती है तो देश में किसके पास कितनी संपत्ति है यह जानने के लिए एक सर्वे कराएगी। यानी आपके पास दो गाड़ी, दो मकान है तो एक ले लिया जाएगा। हमारी बहनों के पास सोना कितना है, इसकी जांच कराई जाएगी और सबको समान रूप से वितरित कर दी जाएगी। ये आपका मंगलसूत्र भी बचने नहीं देंगे और उसे मुसलमानों में बांट देंगे।”
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