आस्थावान तीर्थयात्री की तरह वाराणसी सुबह तड़के उठता है। सुबह साढ़े चार बजे, दशाश्वमेध घाट की ओर जाने वाली सड़क पर, एक फूड स्टॉल का मालिक तवे पर डोसा बना रहा है, एक चमकीली पान की दुकान के बाहर कई ग्राहक खड़े हैं, कोई ठेले पर पूजा सामग्री बेच रहा है ‘10 का, 10 का, 10 का।’ घाट पर फेरीवाले, विदेशी पर्यटकों पर बाज की तरह टूट पड़ते हैं, मुफ्त लॉकर, नाव की सवारी, गर्दन की मालिश। घाट पर 100 से अधिक लोग जुटे हैं और नावों, दीयों और भक्तों के झुंड के बीच गंगा में डुबकी लगाई जा रही है। यह सब सुबह के धुंधलके के तहत होता है, क्योंकि सूरज वाराणसी की गति से नहीं अपने समय से उगता है।
शहर के घाट शाश्वत हैं और उनसे जुड़े कर्मकांड भी। लेकिन उससे बमुश्किल एक किलोमीटर की दूरी पर, यहां के सांसद नरेंद्र मोदी ने इस प्राचीन शहर को अपने रंग में ढालना शुरू कर दिया है। उनका खास प्रोजेक्ट, काशी विश्वनाथ मंदिर कॉरीडोर 2019 की शुरुआत में शुरू हुआ। प्रसिद्ध विश्वनाथ मंदिर का निर्माण मराठा रानी अहिल्याबाई होलकर ने 17वीं सदी में कराया था। औरंगजेब के आदेश के बाद मंदिर ढहाए जाने के एक सदी बाद। यह राम मंदिर निर्माण से पहले शुरू हुआ और हिंदुत्व का वह नारा गूंज उठा, ‘अयोध्या तो झांकी है, काशी, मथुरा बाकी है।’
दोनों परियोजनाओं में महलनुमा भव्य परिसरों का निर्माण किया गया है, स्थानीय लोगों को विस्थापित किया गया और पुरानी सड़कों को नया रूप देकर दुकानों के बोर्ड तक को एक जैसा बना दिया गया है। इनका रंग, डिजाइन और लिखावट एक समान है। कुछ वर्ष बाद भले ही वाराणसी में अधिकांश बोर्ड के बीच-बीच के अक्षर गायब हो गए हों, जैसे कह रहे हों कि ज्यादा दिन तक यह दिखावा बर्दाश्त नहीं। किसी ‘वस्त्रालय’ के बोर्ड में ‘ल’ नहीं है, ‘परिधान’ में ‘न’ गायब है। ‘गांधी’ ‘गाधी’ बन गया है।
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