राजनीति जिस मोड़ से गुजरी है, खासकर उत्तर प्रदेश में, उसके बाद कई प्रश्न विचार के इंतजार में पंक्ति बनाकर खड़े हो गए हैं। इनमें से कई महामारी के शून्य में डूब गए थे। इतना गहरे कि फिर सतह पर नहीं आ सके। ऐसा ही एक प्रश्न था हिंदी में जगह पहले भी कम थी, इधर के राजनैतिक दौर में और घट गई। बहस का चलन एकाएक कमजोर पड़ गया। जरूर इसमें टेक्नोलॉजी का भी योगदान है। इंटरनेट से मिली सुविधाओं ने एक नए समाज को जन्म दिया, जो खुद को सोशल मीडिया कहता है और विचार-विमर्श का प्रतिनिधि माध्यम मानता है। अगर आप उसके प्रतिभागी नहीं हैं, तो वह आपको हाशियावासी मानने में संकोच नहीं करता। इस तर्क से कोई फर्क नहीं पड़ता कि हाशिये पर हिंदी समाज के लाखों, करोड़ों लोग रहते हैं, जो कभी अखबारों और पत्रिकाओं की बहस के करीब आने लगे थे, अब दूर छिटक गए हैं।
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हमेशा गूंजेगी आवाज
लोककला के एक मजबूत स्तंभ का अवसान, अपनी आवाज में जिंदा रहेंगी शारदा
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एक फ्रांसिसी फिल्मकार की डॉक्यूमेंट्री बच्चन की सितारा बनने के सफर और उनके प्रति दीवानगी का खोलती है राज
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विशेष दर्जे की आवाज
विधानसभा के पहले सत्र में विशेष दर्जे की बहाली का प्रस्ताव पास कर एनसी का वादा निभाने का दावा, मगर पीडीपी ने आधा-अधूरा बताया
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नाल्ड ट्रम्प की जीत लोगों के अनिश्चय और राजनीतिक पहचान के आपस में नत्थी हो जाने का नतीजा
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जलवायु नीतियों का भविष्य
राष्ट्रपति के चुनाव में डोनाल्ड ट्रम्प की जीत रिपब्लिकन पार्टी के समर्थकों के लिए जश्न का कारण हो सकती है लेकिन पर्यावरण पर काम करने वाले लोग इससे चिंतित हैं।
दोस्ती बनी रहे, धंधा भी
ट्रम्प अपने विदेश, रक्षा, वाणिज्य, न्याय, सुरक्षा का जिम्मा किसे सौंपते हैं, भारत के लिए यह अहम