जम्मू-कश्मीर की सरकार ने 16 अगस्त की सुबह कुछ ऐसी असामान्य गतिविधियों की शुरुआत की जो इस इलाके में लंबे समय से रुकी पड़ी थीं। उप-राज्यपाल मनोज सिन्हा के प्रशासन ने एक के बाद एक लगातार कई आदेश जारी करने शुरू कर दिए, जिससे पूरी घाटी में आशंका फैल गई कि कुछ होने वाला है। इन आदेशों में एक बहुत विवादास्पद था, जिसमें यहां रहने वाले पश्चिमी पाकिस्तान के शरणार्थियों को जमीनों के हस्तांतरण की बात कही गई थी। आदेश तब जारी किया गया जब चुनाव आयोग ने घोषणा की कि वह 16 अगस्त की दोपहर में प्रेस कॉन्फ्रेंस करेगा।
बाकी दूसरे आदेशों में पुलिस अफसरों के तबादले शामिल थे, जिसमें जम्मू और कश्मीर की सीआइडी का एक नया मुखिया तैनात करना शामिल है। इसे एक अहम और निर्णायक पद माना जाता है। इसके अलावा, पत्रकारों के लिए सरकारी मान्यता भी जारी की गई। अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद करीब 200 पत्रकारों की मान्यता खत्म कर दी गई थी। इस चक्कर में सैकड़ों पत्रकारों ने मान्यता के लिए आवेदन ही नहीं किया, इस डर से कि सरकार वैसे भी उन्हें मान्यता देगी नहीं।
इस संदर्भ में सरकार की ओर से एक बयान आया, "कुल 412 आवेदन आए थे, 207 जम्मू डिवीजन से और 205 कश्मीर से।" सरकार के अनुसार उसने मान्यता प्रदान करने के लिए 262 नामों की सूची को अंतिम रूप दिया है।
सरकार ने बयान में यह भी बताया कि मनोज सिन्हा के मातहत प्रशासनिक परिषद ने 1947, 1965 और 1971 तथा पश्चिमी पाकिस्तान के विस्थापितों को उनकी जमीनों पर मालिकाना अधिकार को मंजूरी दे दी है। बयान कहता है, "यह फैसला विस्थापित व्यक्तियों को उनकी जमीनों पर स्वामित्व का अधिकार देगा, जैसा कि राज्य की जमीनों पर लागू है।"
नेशनल कॉन्फ्रेंस के महासचिव अली मोहम्मद सागर ने इस आदेश पर तत्काल प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा कि "यह कदम स्पष्ट रूप से चुनावी प्रक्रिया की अखंडता की उपेक्षा करने की मंशा से उठाया गया है। चुनावी प्रक्रिया में ऐसे हस्तांतरण पर रोक है ताकि सत्ताधारी दल को विपक्ष के ऊपर अनावश्यक लाभ न मिलने पाए।"
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