ढोल से डीजे तक का सफर

पहले शादी दो परिवारों बीच रिश्ता जुड़ने और पारंपरिक रस्मों का उत्सव थी। अब इसका स्वरूप बदल गया है। पहले महिलाएं पारंपरिक लोकगीत गाती थीं । अब यह परंपरा लुप्त होती जा रही है। हर रस्म के लिए अलग-अलग होने वाले गीत अब सुनाई नहीं पड़ते। नई पीढ़ी ने भले ही इन गीतों से दूरी बना ली हो लेकिन अब भी शादी के समारोह में ढोल जरूर बजता है। 1994 में आई हिंदी फिल्म हम आपके हैं कौन दशकों तक भारतीय शादियों के पारंपरिक स्वरूप का प्रतीक बनी रही, लेकिन वक्त बदला और फिर भारतीय शादियों का तौर-तरीका बिलकुल बदल गया। समय के साथ भव्यता आने लगी।
इस भव्यता के बीच कुछ नई बातें भी शादी समारोह के साथ जुड़ने लगीं। 1990 के दशक के अंत और 2000 के शुरुआती वर्षों में लाइव बैंड का चलन शुरू हुआ। यूफोरिया जैसे बैंड और स्थानीय पंजाबी संगीत समूह शादियों का हिस्सा बनने लगे। बल्ले-बल्ले और मौजा ही मौजा जैसे गाने शादी गीतों की सूची में जरूरी हो गए। यही वह समय था जब छोटे पारिवारिक समारोह से निकलकर शादी भव्य आयोजनों में तब्दील होने लगी। संगीत सिर्फ शादी का हिस्सा न होकर मुख्य आकर्षण बन गया।
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