इक्कीसवीं सदी की शुरुआत एक अपशकुनी आशंका से हुई थी। वाइ2 के (यानी वर्ष दो हजार) अब शायद बहुतों को दिमाग पर काफी जोर देने पर याद इ आए। मिलेनियल्स, जेन जेड या ऐसी ही संज्ञाओं से जानी जाने वाली पीढ़ियां तो शायद सुनकर हैरान रह जाएं। उन्हें यह फिक्शन लगे, लेकिन डर वास्तविक था। कंप्यूटिंग एल्गोरिद्म वर्ष के आखिरी दो अंक ही दर्ज करता था (मसलन, 1999 का 99), ऐसे में अगला वर्ष 00 दर्ज होता तो सब कुछ गड़बड़ा जाता, पीछे का खो जाता। बड़ी मशक्कत से दुरुस्त हुआ। वर्ष के चार अंक शुरू से डाले गए, लेकिन इक्कीसवीं सदी की पहली चौथाई बीतते-बीतते टेक्नोलॉजी इतनी तेज गति से बदली कि यह बाबा आदम के जमाने की बात लगती है। स्मार्टफोन, सोशल मीडिया और अब हमारे सामने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआइ) का नफा-नुकसान, खतरा-जोखिम मुद्दा बना हुआ है। अपने दौर के महान वैज्ञानिक स्टीफेन हॉकिंग तो गहरे चेता गए हैं कि एआइ मानव सभ्यता को खत्म कर सकती है। टेक्नोलॉजी की छलांग हमारे जीवन, लोकाचार, रहन-सहन, संस्कृति, व्यापार, पेशा, राजनीति, अर्थव्यवस्था सब पर गहरा असर डाल रही है।
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